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Raag

वाचस्पती

राग वाचस्पती कर्नाटक संगीत से लिया गया राग है। राग मारू बिहाग में निषाद कोमल करने से राग वाचस्पती बनता है। यह एक बहुत ही मधुर लेकिन अप्रचलित राग है।

बिहागड़ा

वादी: ग
संवादी: नि
थाट: BILAWAL
आरोह: सागमपनिसां
अवरोह: सांनि॒प नि॒ध॒प गमगपमग रेसा
पकड़: ऩि॒ध़॒प़ गमग पमग-सा
रागांग: उत्तरांग
जाति: SHADAV-SAMPURN
समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
विशेष: उभय निषाद।यह राग खमाज एवं बिहाग रागों का मिश्रण है। खमाज से बचाव - प नि सां, सां नि प का प्रयोग बिहाग से बचाव - नि॒ ध प, ग म ग का प्रयोग
 

जोगिया

इस राग को जोगी नाम से भी जाना जाता है। राग भैरव के सामन ही इसमें रिषभ और धैवत कोमल लगते हैं, पर उन्हे लगाने का ढंग अलग होता है। राग भैरव में रिषभ और धैवत को आंदोलित किया जाता है वैसा आंदोलन जोगिया में कदापि नहीं किया जाता। अवरोह में निषाद का प्रयोग अल्प होता है और उसे सा से  पर जाते हुए कण के साथ में प्रयोग करते हैं। कभी कभी अवरोह में कोमल निषाद को भी कोमल धैवत के साथ कण के रूप में लगाते हैं जिससे राग और भी सुहवना लगता है। इस राग में रे१-म और ध१-म का प्रयोग मींड के साथ अधिक किया जाता है।

मल्हार

संगीत सम्राट तानसेन द्वारा अविष्क्रुत इस राग का मौसमी रागों में प्रमुख स्थान है। वर्षा ऋतु में जाया जाने वाला यह राग मियाँ मल्हार भी कहलाता है। इसके अवरोह में दोनों निषाद साथ साथ भी लेते हैं, जिसमें पहले कोमल निषाद को धैवत से वक्र करके बाद में शुद्ध निषाद का प्रयोग करते हैं जैसे - प नि१ ध नि सा'। मींड में कोमल निषाद से शुद्ध निषाद लगाकर षड्ज तक पहुँचा जा सकता है। अवरोह में कोमल निषाद का ही प्रयोग होता है। 

राग खंबावती

खंबावती हा भारतीय शास्त्रीय संगीतातील एक राग आहे.


राग खम्बावती बहुत ही मधुर राग है। राग झिंझोटी, जो की ज्यादा प्रचलन में है, इससे मिलता जुलता राग है। ग म सा - यह राग खम्बावती की राग वाचक स्वर संगति है। सामान्यतया इस राग का आरोह सा रे म प ध सा है परन्तु गंधार का उपयोग आरोह में ग म सा इस स्वर संगती में ही किया जाता है। कभी-कभी आरोह में शुद्ध निषाद का प्रयोग म प नि नि सा' इस तरह से किया जाता है।

राग के अन्य नाम

खम्बावती राग

खंबावती राग हिन्दुस्तानी शास्त्रीय सङ्गीतया छपु राग ख। थ्व राग खमाज थाट् गणया छगू प्रसिद्ध प्राचीन राग ख। बहनिया २ता प्रहरय् थ्व राग हालिगु या। थ्व सम्पूर्णषाडव जातिया राग ख। अवरोहय् वृषभस्वर पूर्णतया त्याग जुइ। “ग म स” हृदयभूतस्वर जुइ। थ्व रागया वादिस्वर षड्जः व संवादिस्वर मध्यमः ख। केचन वादिस्वरः गान्धारः, संवादिस्वरः षड्जः थुकिया अभिप्रयन्ति ख। थ्व करण रसय् विप्रलंभ श्रृङ्गार रस प्रधान राग ख।

श्लोक

थ्व रागया दसु श्लोक थ्व कथं दु-

राग के अन्य नाम

भीमपलासी

भीमपलासी भारतीय शास्त्रीय सङ्गीतको एक राग हो। यो रागलाई दिउँसोको प्रारम्भिक प्रहरमा गाइने गरिन्छ।यो राग पर्याप्त ठाटदेखि निस्कन्छ।

ভীমপলাশি

 

ভীমপলাশি (বা ভীমপলশ্রী) হল হিন্দুস্থানি উচ্চাঙ্গসঙ্গীতের একটি রাগ। এটি কাফি ঠাটের অন্তর্গত। এর জাতি ঔড়ব-সম্পূর্ণ। এই রাগের বাদীস্বর মধ্যম, তবে সা এবং পা এর প্রাধান্য বেশি পরিলক্ষিত হয়। এর প্রকৃতি ধীরগতি সম্পন্ন এবং শান্ত ভাব সম্পন্ন। ইহাতে করূণ রস ফুটে উঠে। অপরাহ্নের পর এই রাগ পরিবেশন করা হয়।

তত্ত্ব

আরোহণ এবং অবরোহণ

  • আরোহণঃ সা জ্ঞা মা পা ণা র্সা
  • অবরোহণঃ র্সা ণা ধা পা মা জ্ঞা রা সা

এই রাগটিতে "কোমল নি" এবং "কড়ি মা" ব্যবহৃত হয়। এটি একটি ঔড়ব-সম্পূর্ণ রাগ, অর্থাৎ, এর আরোহণে ৫ টি স্বর এবং অবরোহণে ৭ টি স্বর ব্যবহৃত হয়।

बागेश्री

बागेश्री भारतीय शास्त्रीय सङ्गीतको एक राग हो। यो मध्यरातको चर्चित राग हो। यो रागले प्रेमीसँग पुनर्मिलनको लागि पर्खिरहेकी एउटी महिलाको भावनालाई चित्रण गर्नको लागि प्रस्तुत गर्ने गरिन्छ। यो रागलाई पहिलो पटक १६औँ शताब्दीमा अकबरको दरबारी कवि मियाँ तानसेनले गाएको मान्यता रहि आएको छ।

राग के अन्य नाम