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Bhatiyar

राग भटियार मारवा ठाट से उत्पन्न राग है। सा ध ; नि प ; ध म ; प ग; यह राग भटियार की राग वाचक स्वर संगतियाँ हैं। यह राग वक्र है और गाने में कठिन है इसीलिए इसे गुरुमुख से ही सीखना ही उचित है। 
इस राग में मांड की कुछ झलक भी दिखाई देती है। नि ध नि प ध म - इन स्वरों से राग मांड झलकता है। आरोह में रिषभ और निषाद दुर्बल हैं। अवरोह में शुद्ध मध्यम एक न्यास का स्वर है। उत्तरांग का प्रारम्भ तीव्र मध्यम से किया जाता है। इस राग से वातावरण में उग्रता का भाव उत्पन्न होता है। इसे तीनों सप्तकों में गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग भटियार का रूप दर्शाती हैं -

सा म ; म प ; म ध प म ; प ग ; प ग रे१ सा ; सा ध ; ध नि प ; ध म ; ध प ; ग प ग रे१ सा ; म् ध सा' ; सा' नि रे१' नि ध प ; ध नि ; प ध ; म ; ध प ग रे१ सा ; सा ,नि ,ध सा ,नि रे१ ग म ध प ; ग प ग रे१ सा ;

थाट

आरोह अवरोह
सा रे१ सा ; सा म ; म ध प ; सा ध ; ध नि प म ; प ग ; म् ध सा' - सा' रे१' नि ध प ; ध नि प म ; प ग रे१ सा ;
वादी स्वर
शुद्ध मध्यम/षड्ज
संवादी स्वर
शुद्ध मध्यम/षड्ज