Bageshree
राग बागेश्री रात्रि के रागों में भाव तथा रस का स्त्रोत बहाने वाला मधुर राग है। इस राग को बागेसरी, बागेश्वरी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। राग की जाति के संबंध में अन्य मत भी प्रचलित हैं, कोई इसे औढव-संपूर्ण तो कोई इसे सम्पूर्ण-सम्पूर्ण मानते हैं। इस राग में रिषभ का प्रयोग अल्प है तथा उस पर अधिक ठहराव नहीं किया जाता। परंतु आरोह में रिषभ वर्ज्य करने से यथा ,नि१ सा म ग१ रे सा अथवा सा ग१ म ग१ रे सा, ये स्वर संगतियाँ राग भीमपलासी की प्रतीत होती हैं। अतः बागेश्री में रे ग१ म ग१ रे सा, इन स्वरों को लेना चाहिए। वैसे ही ,नि१ सा ग१ म
- Read more about Bageshree
- Log in to post comments
- 28413 views
Bahar
राग बहार, वसंत व शरद ऋत में गाया जाने वाला अत्यंत मीठा राग है। खटके और मुरकियों से महफिल में रंगत जमती है। राग बहार का मध्यम स्वर उसका प्राण स्वर है। अवरोह में मध्यम पर बार बार न्यास किया जाता है। राग बहार का निकटतम राग है राग शहाना-कान्हडा, जिसमें पंचम स्वर पर न्यास किया जाता है। इस राग के मिश्रण से बनाये गये कई राग प्रचिलित हैं यथा - बसंत-बहार, भैरव-बहार, मालकौन्स-बहार, अडाना-बहार इत्यादी।
- Read more about Bahar
- Log in to post comments
- 1756 views
Alhaiya Bilawal
राग बिलावल में कोमल निषाद के प्रयोग से राग अल्हैया बिलावल का निर्माण हुआ है। इसके अवरोह में निषाद कोमल का प्रयोग अल्प तथा वक्रता से किया जाता है जैसे ध नि१ ध प। यदि सीधे अवरोह लेना हो तो शुद्ध निषाद का प्रयोग होगा जैसे सा' नि ध प म ग रे सा। इसी तरह अवरोह में गंधार भी वक्रता से लेते हैं जैसे - ध नि१ ध प ; ध ग प म ग रे सा। इस राग का वादी स्वर धैवत है परन्तु धैवत पर न्यास नहीं किया जाता। इसके न्यास स्वर पंचम और गंधार हैं। इस राग में धैवत-गंधार संगती महत्वपूर्ण है और इसे मींड में लिया जाता है।
राग के अन्य नाम
- Read more about Alhaiya Bilawal
- Log in to post comments
- 8942 views
Aheer Bhairav
Ahir Bhairav
Thaat: Chakarvak (Ahir Bhairav), Bhairav*
Jati: Sampooran- Sampooran (7/7)
Virjit Notes: none
Vadi: Ma
Samvadi: Sa
Vikrat Notes: R & N komal
Time: Morning
Aroh: S r G m P D n S*
Avroh: S* n D P m G r S
- Read more about Aheer Bhairav
- Log in to post comments
- 15475 views
Adana
Adana
Thaat: Asavari
Jati: Chhadav-Chhadav (6/6)
Varjit Notes: ‘G’ in Aroh and ‘D’ in Avroh
Vadi: Sa
Samvadi: Pa
Vikrat Notes: G, D komal and both Nishads
Time: Night Third Pehar
Aroh: S R m P d N S*
Avroh: S* d n P m P, g m R S
राग अडाना के आरोह में गंधार वर्ज्य होने के कारण यह राग दरबारी कान्हड़ा से अलग दिखता है। राग अडाना विशेष कर मध्य और तार सप्तक में खिलता है। इस राग में गंधार और धैवत पर आंदोलन नहीं किया जाता। और इसी तरह गमक और मींड का भी उपयोग नहीं किया जाता इसीलिए इस राग की प्रकृति में चंचलता है।
- Read more about Adana
- Log in to post comments
- 5290 views
राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।