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Jogiya

Jogia
Thaat: Bhairav
Jati: Audav-Chhadav (5/6)
Vadi: M
Samvadi: S
Vikrit: R & D komal
Virjit: G & N in Aroh, G in Avroh
Aroh: S r m P d S*
Avroh: S* N d P, d m r S
Time: Morning


इस राग को जोगी नाम से भी जाना जाता है। राग भैरव के सामन ही इसमें रिषभ और धैवत कोमल लगते हैं, पर उन्हे लगाने का ढंग अलग होता है। राग भैरव में रिषभ और धैवत को आंदोलित किया जाता है वैसा आंदोलन जोगिया में कदापि नहीं किया जाता। अवरोह में निषाद का प्रयोग अल्प होता है और उसे सा से  पर जाते हुए कण के साथ में प्रयोग करते हैं। कभी कभी अवरोह में कोमल निषाद को भी कोमल धैवत के साथ कण के रूप में लगाते हैं जिससे राग और भी सुहवना लगता है। इस राग में रे१-म और ध१-म का प्रयोग मींड के साथ अधिक किया जाता है।

मध्यम को विस्तार के साथ बार बार लिया जाता है। राग का विस्तार मध्य और तार सप्तक में आकर्षक दिखता है। कोमल रिषभ और कोमल धैवत करुण रस के परिपोषक हैं। इस राग में वैराग्य और भक्ति की भावना उमडती है। यह एक गंभीर प्रकृति का राग है। यह स्वर संगतियाँ राग जोगिया का रूप दर्शाती हैं -

सा रे१ सा ,ध१ सा ; सा रे१ म ; म प ; प म रे१ सा ; रे१ सा ,ध१ सा ; रे१ म प ; म प ध१ सा' ; सा' (नि)ध१ प ; म प ध१ (नि१)ध१ म ; म रे१ सा ; ,ध१ सा ;

थाट

राग जाति

आरोह अवरोह
सा रे१ म प ध१ सा' - सा' नि ध१ प ; म म रे१ सा ;
वादी स्वर
मध्यम/षड्ज
संवादी स्वर
मध्यम/षड्ज