आगरा घराना
आगरा घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है। आगरा घराने के जन्मदाता तानसेन के दामाद हाजी सुजान साहब थे। आगरा घराने में जिन्होंने पूरे देश में ख्याति प्राप्त की उनका नाम था उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ। फ़ैयाज़ खाँ की आवाज़ बहुत दमदार थी और ये महफिल में अपना अनोखा रंग जमा देते थे।
विशेषता
1. नोम-तोम में आलाप करना
2. खुली जोरदार आवाज़ में गाना
3. लय ताल पर विशेष जोर।
संस्थापक
हाजी सुजान खान और उस्ताद घग्घे खुदा बख्श
प्रतिपादक
फ़ैयाज़ खान
लताफ़त हुसैन खान
दिनकर काकिनी
"आगरा भव्य वास्तुकला के शहर के रूप में जाना जाता है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, राजा अकबर के संरक्षण के अंतर्गत फला-फूला। घराना शब्द हिंदी शब्द ‘घर’ और पारसी शब्द ‘अना’ (का) से निर्मित माना जाता है। अतः घराना की संकल्पना को, गायन की विशिष्ट शैली से समझा जाता है, जहाँ रागों के मूलभूत संकेत-चिह्न एक से होते हैं जो घरानों में एक विशेष शैली के अनुसार गाए जातें है। आगरा घराना, ख़्याल गायकी और ध्रुपद-धमार का मिश्रण है। उस्ताद घग्गे ख़ुदा बक्श ख़्याल गायकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण व्यक्ति मानें जाते हैं, जिन्होंने गायकी के पुराने अंदाज़ को रूपांतरित कर, ख़्याल गायकी के अपने अंदाज़ की उत्त्पत्ति की। ग्वालियर घराना ख़्याल परंपरा का जनक माना जाता है, हालाँकि ऐसा विश्वास है कि उन्होंने ख़्याल को लखनऊ से आयात किया है। नवाब असफ़-उद-दौलाह के शासन काल में उनके राजदरबार के संगीतकार ग़ुलाम रसूद ने ख़्याल गायकी का आविष्कार किया था। मज़े की बात यह है कि, उनके पुत्र ग़ुलाम नवी टप्पा गायकी के गुरु माने जाते हैं। (वे शोरे मियाँ के नाम से भी जाने जाते हैं)। पंजाब के देशज संगीत को सीखने के लिए वे पंजाब गए और उन्होंने इसे एक नया रूप प्रदान कर दिया। यह शोरे मियाँ द्वारा ग्वालियर भेजा गया, जिसके कारण टप्पा और ग्वालियर गायकी में मिलने वाली समानताओं को समझा जा सकता है। आगरा घराना मूलतः ध्रुपद परंपरा से संबंधित है, जहाँ ख़्याल गायकी को बाद में पेश किया गया। यह नौहर बानी से संबंधित है जो अलाउद्दीन ख़िलजी के समय से अस्तित्व में माना जाता है। आगरा घराने का पहला रिकॉर्ड किया गया संगीत उसके प्रसिद्ध सदस्य ज़ोहराबाई अग्रेवली का है। वे उस्ताद शेर ख़ाँ, उस्ताद कल्ला ख़ाँ और उस्ताद मेहबूब ख़ाँ की शिष्या थीं। ऐसा कहा जाता है कि ज़ोहराबाई की गायकी, ग्वालियर परंपरा से मिलती जुलती थी। उन्हें ठुमरी और ग़ज़ल गायकी के लिए भी जाना जाता था जिसकी तालीम उन्होंने ढ़ाका के अहमद ख़ाँ से ली थी। आगरा और जयपुर घराना राग रूप पर विशेष ध्यान देते थे। उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ आगरा घराने के एक ख्यातिप्राप्त व्यक्तित्व थे। उन्होंने ख़्याल गायकी में आलाप और विस्तार की ज़रूरत को समझा और उन्होंने ध्रुपद को ख़्याल गायकी के साथ समायोजित किया, जो उनकी एक विशेषता थी। वे बरोडा के महाराजा, सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय के दरबारी संगीतकार थे।"
आगरा घराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक अद्वितीय परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी रचनाएँ उनके गेय सौंदर्य और संगीत सामर्थ्य के लिए भी उल्लेखनीय मानी जाती हैं। रागों की बंदिशें ब्रज संस्कृति, अर्थात् भगवान कृष्ण और उनकी मनोहर लीलाओं से प्रभावित हैं, जो आगरा घराने की गायकी का सबसे आकर्षक हिस्सा हैं। इस घराने के प्रसिद्ध गायकों में से एक उस्ताद विलायत हुसैन खाँ हैं जिन्होंने 'प्राण पिया' उपनाम के तहत अनेक बंदिशों की रचना की थी। एक और भारतीय शास्त्रीय गायक उस्ताद शराफ़त हुसैन खाँ थे। वे तीन घरानों - आगरा, अतरौली और रंगीले – के ज्ञान के मार्ग दर्शक बनें। खादिम हुसैन खाँ साहब एक महान हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक और गीतकार भी थे। उन्होंने आगरा घराने की छत्र-छाया के तहत लगभग १५० बंदिशों की रचना की थी। उन्होंने गायन के साथ कविता पर भी ज़ोर दिया। आगरा घराना सभी पाँच स्वरों का उपयोग करता है, जबकि अन्य घराने गाते समय केवल दो-तीन स्वरों का उपयोग करते हैं। यह ध्रुपद और धमार की शैलियों को भी जोड़ता है। आगरा घराने में बोल का उच्चारण इसे गायकी का असाधारण और महान रूप देता है। उच्चारण केवल स्वर की स्पष्टता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शब्दांश भी है। आगरा घराने के गायकी में बोलों की रचना और विस्तार पैटर्न में बंधे हुये हैं। इस घराने के शिक्षक अपने शिष्यों को घराने की शैली और शुद्धता से संबंधित बंदिश गाने के लिये आवश्यक तकनीकों और विविधताओं के साथ प्रशिक्षित करते हैं। आगरा घराने में उच्चारण, ताल में विवधिता और लय, कलाकार की निपुणता को दर्शाते हैं।
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