आलाप के प्रकार
गौरी (भैरव अंग)
बैरागी तोडी
राग बैरागी तोडी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। गाने में कठिन लेकिन मधुर है। राग बैरागी के मध्यम की जगह कोमल गंधार लेने से राग बैरागी तोड़ी अस्तित्व में आता है। यह राग तोड़ी थाट के अंतर्गत आता है। इसका चलन राग तोडी के समान है इसलिये इसमें गंधार अति कोमल लिया जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर है और इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी तोडी का रूप दर्शाती हैं -
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कीरवाणी
यह कर्नाटक संगीत से हिन्दुस्तानी संगीत में लिया हुआ राग है। इस राग का वाद्य संगीत में ज्यादा प्रयोग किया जाता है। यह चन्चल प्रक्रुति का राग होने कि वजह से इसमे ठुमरी जैसी बंदिशें ज्यादा प्रचिलित हैं। फिल्म संगीत में भी इस राग का बहुत उपयोग किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग कीरवाणी का रूप दर्शाती हैं -
सा रे ग१ म ध१ प ; ध१ प म ग१ रे ग१ म प ; प ध१ नि सा' नि ध१ प ; प ध१ नि सा' ; प ध१ सा' रे' ; सा' रे' ग१' रे' सा' नि ध१ प ; प ध१ नि रे' नि ध१ ; नि ध१ म ; ध१ म ग१ रे१; ग१ प म ग१ रे सा ,नि ; ग१ रे सा ,नि ,ध१ ,नि रे सा ;
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