पलाश के औषधीय उपयोग
ढाक
ढाक आकार में मांदर और ढोल से बड़ा होता है। इसमें गमहर लकड़ी के ढांचे में मुंह को बकरे की खाल से ढंक कर बध्दी से कस दिया जाता है। इसे कंधे से लटका कर दो पतली लकड़ी के जरिये बजाया जाता है।
जुड़ी नागरा, कारहा, ढप, खंजरी, चांगु, डमरू आदि भी चमड़े से निर्मित ऐसे वाद्य हैं, जो झारखंड के विभिन्न इलाकों में बजते हैं। खास-खास समय और अवसरों पर खास वाद्य का इस्तेमाल ज्यादा होता है। हालांकि ये सब सहायक ताल वाद्य हैं।
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