भवाई नृत्य राजस्थान
कहरही (कहरुआ नृत्य)
'कंहारों' का पुस्तैनी पेशा पालकी ढोना था। बाद में ये मिटटी बर्तन भी बनाने लगे। इस काम में उल्लास के लिए इन्होने नाचना -गाना भी अनिवार्य समझा। अतः चाक की गति के संग-संग गीत भी गुनगुनाने लगे। 'संघाती' घड़े पर ताल देने लगे और ठुमकने भी लगे। ओरी-ओरियानी खड़ी होकर महिलाएं गीत दुहराने लगीं। इस प्रकार नृत्य, गीत, वाद्य का समवेत समन्वय हो गया और उससे एक विधा का जन्म हो गया जिसे 'कंहरही' कहते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहाँ इनकी बस्ती है, ये लोग अपने आनंद और आल्हाद के लिए, श्रम -परिहार के लिए, मधुर धुन, लय, ताल में नाचने-गाने लगे।
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लूर नृत्य
लूर नृत्य मारवाड़ (राजस्थान) का लोक नृत्य है। यह नृत्य फाल्गुन मास में प्रारंभ होकर होली दहन तक चलता है। यह नृत्य राजस्थानी महिलाओं द्वारा किया जाता है। महिलाएँ घर के कार्य से निवृत होकर गाँव में नृत्य स्थल पर इकट्ठा होती है, एवं उल्लास के साथ एक बड़े घेरे में नाचती हैं।
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नटुआ नृत्य
'खटिकों' की तरह चर्मकार जाति के लोग 'नटुआ' नाच करते हैं। पहली फसल कट जाने पर फाल्गुन -चैत की चांदनी रात में यह द्वार-द्वार जाकर नाचते-गाते और बदले में कुछ अनाज या पैसा पाते थे। ये लोग बरी-भात और पूड़ी पर नाचते थे। अब अपनी बस्ती में वृत्त - अर्धवृत्त बनाकर घुमते हुए नाचते और हास्य - व्यंग में अभिनय करते हैं। रंग - बिरंगी गुदड़ी पहने चूना कालिख लगाये प्रहसक अश्लील् चुटकुले बोलता है। नर्तक बीच में नाचता है। एक टेढ़ी छड़ी अनिवार्य होती है। ढोल, छड, घंटी, झांझ, छल्ला, पावों में पैरी, कमर में कौड़ी बांधे नर्तक हास्य का माहौल सृजित कर देते हैं।
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हाथीमना नृत्य
हाथीमना नृत्य राजस्थान के लोक नृत्यों में से एक है। यह भीलों का नृत्य है। भील जनजाति में यह नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है।
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