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पूर्वी

बसन्त

राग बसंत, बसंत ऋतु में गाया जाने वाला राग है। इसे मध्य और तार सप्तक में अधिक गाया जाता है। इस राग में बसंत ऋतु के अलावा श्रृंगार रस और विरह रस कि बन्दिशें दिखाई देती हैं। शुद्ध मध्यम का प्रयोग कभी कभी ऐसे किया जाता है - सा म म ग

यह स्वर संगतियाँ राग बसंत का रूप दर्शाती हैं - सा ध१ प ; प ध१ प प म् ग म् ग ; म् नि ध१ म् ग म् ग रे१ सा ; सा म ; म ग ; म् ध१ रे१' सा' ; नि ध१ प ; 

ललित

राग ललित एक बहुत ही मधुर राग है। इस राग में दोनों मध्यम (तीव्र व शुद्ध मध्यम) एक साथ (म् म ; ग म् म ; नि ध१ म् म) प्रयोग होने के कारण इस राग का एक अलग ही वातावरण तैयार होता है। इस राग का धैवत, वास्तविक कोमल धैवत से थोड़ा चढ़ा हुआ होता है, जो शुद्ध धैवत और कोमल धैवत के बीच की श्रुति है, जिसे सिर्फ गुरुमुख से ही सीखा जा सकता है। इस राग में शुद्ध मध्यम और शुद्ध गंधार बहुत ही महत्वपूर्ण स्वर हैं। यह स्वर संगतियाँ राग ललित का रूप दर्शाती हैं -

राग के अन्य नाम

श्री

राग श्री एक पुरुष राग है। भारतीय संगीत शास्त्रों में 6 पुरुष राग और 36 रागिनियों का वर्णन किया गया है। ये 6 पुरुष राग हैं - राग भैरव, राग मालकौंस, राग हिंडोल, राग श्री, राग दीपक और राग मेघ-मल्हार।

पूर्वी

राग पूर्वी सायंकाल संधि प्रकाश के समय गाया जाने वाला राग है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इस राग का विस्तार मन्द्र तथा मध्य सप्तक में अधिक होता है। इस राग की प्रक्रुति गम्भीर है।

पूरिया धनाश्री

राग पूरिया धनाश्री एक सायंकालीन संधि प्रकाश राग है। यह करुणा रस प्रधान गंभीर राग है। इसका निकटतम राग पूर्वी है, जिसमें दोनों मध्यम का प्रयोग किया जाता है।

राग के अन्य नाम

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