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Raag

पटदीप

 राग भीमपलासी में शुद्ध निषाद का प्रयोग करने पर राग पटदीप सामने आता है। राग भीमपलासी में वादी स्वर मध्यम है जबकि राग पटदीप का वादी स्वर पंचम है।

राग के अन्य नाम

पंचम जोगेश्वरी

पंचम जोगेश्वरी - यह राग आचार्य तनरंग जी की कल्पना है, जिसमें पंचम का उपयोग अवरोह में विशेष रूप से किया जाता है। पंडित रवि शंकर द्वारा बनाए गए राग जोगेश्वरी से इस राग में पंचम की उपस्थिति के कारण थोड़ी सी भिन्नता है। अवरोह में पंचम का उपयोग इस प्रकार से किया जाता है - सा ग म ग१ सा ; ग म (प) म ग१ सा ; सा ग म प म ; प ग म ग१ सा ; ग म ध म ग ; ग म ध नि१ ध म ग ; ग म (प) म ग१ सा

नारायणी

राग नारायणी को दक्षिण पद्धति के संगीत से हिन्दुस्तानी पद्धति में विद्वानों द्वारा लाया गया है। इस राग में कोमल निषाद की उपस्थिति इसे राग दुर्गा से अलग करती है। पंचम न्यास स्वर है और अवरोह में धैवत को दीर्घ किया जाता है, जैसे - सा रे प ; म प नि१ ध ध प। धैवत को दीर्घ करने से यह राग, सूरदासी मल्हार से अलग हो जाता है, जहाँ धैवत दीर्घ नहीं किया जाता। यह एक शांत प्रकृति का राग है, जिसका विस्तार मध्य और तार सप्तकों में किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग नारायणी का रूप दर्शाती हैं - 

नायकी कान्ह्डा

नायकी कान्ह्डा राग को काफी थाट जन्य माना जाता है। इसके गंधार और निषाद कोमल है। धैवत वर्ज्य होने से इसकी जाति षाडव है। वादी मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय मध्य-रात्रि है।

इस राग को देवगिरी के दरबार गायक पंडित गोपाल नायक जी ने बनाया था इसलिए यह नायकी कान्हड़ा के नाम से जाना जाता है। यह एक उत्साहवर्धक और प्रभावशाली राग है।

नंद

राग नन्द को राग आनंदी, आनंदी कल्याण या नन्द कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग में बिहाग, गौड सारंग, हमीर व कामोद का आभास होता है। जिनसे बचने के लिये - सा ग म ध प रे सा ये राग वाचक स्वर लिये जाते हैं।