Skip to main content

Raag

शिवमत भैरव

संक्षिप्त परिचय:- इस राग की रचना भैरव थाट से मानी गई है। इसमें दोनों गंधार, दोनों निषाद, तथा ऋषभ- धैवत कोमल प्रयोग किये जाते हैं। जाति वक्र संम्पूर्ण है। वादी स्वर धैवत और संवादी ऋषभ है। गायन समय प्रातःकाल है।
आरोह– सा रे ग म प ध नि सां।
अवरोह– सां नि ध प, नि ध प म ग म रे सा, नि सा ग रे सा।

शिवमत भैरव विशेषता:-

मुलतानी

यह अत्यंत मधुर राग है। राग तोडी से बचने के लिये राग मुलतानी में ,नि सा म१ ग१ रे१ सा - यह स्वर समुदाय लिया जाता है। आलाप की समाप्ति इन्ही स्वरों से की जाती है। इसमे रिषभ पर जोर नहीं देना चाहिये। इस राग में मध्यम और गंधार को मींड के साथ बार बार लिया जाता है। प्रायः आलाप और तानों का प्रारंभ मन्द्र निषाद से किया जाता है।

यह गंभीर प्रकृति का राग है। इसमें भक्ति रस की अनुभूति होती है।