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अमिताभ बच्चन के 38 साल पहले मौत को हरा कर आने की पूरी कहानी

अमिताभ बच्चन के 38 साल पहले मौत को हरा कर आने की पूरी कहानी

"चिरंजीव अमिताभ की दशा में पर्याप्त सुधार, पर अभी उन्हें इंटेंसिव केयर यूनिट में ही रखा जा रहा है और शायद 15 दिन और रखना पड़ेगा. सामान्य होने में शायद महीनों लगें. चिंता, शुभकामना, प्रार्थना के लिए आभारी."- बच्चन

ये पंक्तियाँ दिवंगत हरिवंशराय 'बच्चन' के उस पत्र की हैं, जो उन्होंने मुझे 10 अगस्त 1982 को तब भेजा था जब 38 साल पहले उनके पुत्र अमिताभ बच्चन, मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में ज़िंदगी के लिए लड़ रहे थे.

अमिताभ बच्चन ने अपनी 77 बरस की ज़िंदगी में कई बार अपनी बीमारी के कारण मुश्किल दौर को देखा है, यह अच्छी बात है कि वह हमेशा अपनी बीमारी पर विजय पाते रहे हैं.

इन दिनों एक बार फिर वह आज के दौर की सबसे भयावह बीमारी कोरोना वायरस से संक्रमित हैं. 12 जुलाई रात करीब 11 बजे जैसे ही अमिताभ बच्चन को मुंबई के नानावती अस्पताल में दाखिल होने और फिर उनके कोरोना पॉज़िटिव होने का समाचार आया तो सभी चौंक गए कि अमिताभ जैसी शख्सियत को कोरोना कैसे हो गया?

अमिताभ बच्चन के कोरोनाग्रस्त होने की ख़बर आने के कुछ देर बाद ही उनके पुत्र अभिषेक और अगले दिन उनकी पुत्रवधू ऐश्वर्या और पौत्री आराध्या की भी कोरोना संक्रमित होने की ख़बर आई तो घबराहाट और भी बढ़ गई.

अमिताभ को लेकर ज्यादा चिंता इसलिए भी बनी हुई है कि उनकी उम्र तो 77 की है ही, साथ ही वह कुछ अन्य रोगों से भी ग्रस्त हैं. यहां तक उनके लिवर का भी सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्सा ही काम करता है.

आज पूरे देश में अमिताभ की सेहत को लेकर बेचैनी है, मीडिया उनके स्वास्थ को लेकर पल-पल की ख़बर सबसे पहले देने की दौड़ में जुटा है.

देश के अनेक हिस्सों से उनके जल्द ठीक होने के लिए घरों से लेकर मंदिरों तक पूजा-प्रार्थना की जा रही है, दुआएं मांगी जा रही हैं.

38 साल पहले भी ठीक 38 साल पहले जुलाई 1982 में भी पूरा देश अमिताभ बच्चन की सेहत को लेकर कुछ इससे भी ज्यादा चिंतित था.

कोई उनकी लंबी उम्र के लिए हवन, यज्ञ कर रहा था तो कोई नवग्रह की पूजा, कोई गुरुद्वारे में अरदास कर रहा था तो कोई पीर बाबा की दरगाह पर जाकर उनके लिए दुआ मांग रहा था, तो कोई चर्च में गॉड से प्रेयर कर रहा था.

यह वह दौर था जब 26 जुलाई 1982 को बेंगलुरु में फिल्म 'कुली' के एक स्टंट सीन की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन इस तरह घायल हो गए थे कि एक बार तो बड़े-बड़े डॉक्टर्स ने हाथ खड़े कर दिए थे. देश भर में उनकी हालत 'क्रिटिकल' होने का समाचार फैलने से सभी की सांसें अटक सी गईं थीं.

तब देश में न आज की तरह न्यूज़ चैनल्स थे और न आज की तरह सोशल मीडिया, इस सबके बावजूद किसी फिल्म सितारे के प्रति तब पहली बार जिस तरह की देशव्यापी चिंता देखी गई, उसकी कोई और मिसाल न पहले कभी मिलती है और न बाद में.

अमिताभ के साथ 'कुली' की शूटिंग के दौरान जब यह घटना घटी तब उनकी उम्र 40 बरस की थी, जिनकी उम्र अब 40 से कम है, वे नहीं जानते कि 38 साल पहले अमिताभ बच्चन के घायल होने पर देश किस तरह ग़मगीन हो गया था, उस समय देश में जो नज़ारे थे, उनकी कल्पना भी सहज नहीं.

मैं अमिताभ बच्चन को पिछले करीब 43 बरसों से क़रीब से देखता आया हूँ. उनके पिता और सुप्रसिद्ध कवि और लेखक डॉ हरिवंशराय बच्चन मेरे मार्गदर्शक रहे हैं.

दीवार: जिसका जलवा 45 साल बाद भी कायम है
बच्चन जी से घनिष्ठता के चलते मुझे उनके घर पर ही अमिताभ बच्चन से भी मिलने का मौक़ा 1976-1977 के दौर से ही मिलने लगा था.

हालांकि उस दौर में न तो मोबाइल थे और न ही फ़ोन पर बात करना आसान था लेकिन पत्रों के ज़रिए बच्चन जी से नियमित बात होती थी.

इसलिए जब अमिताभ बच्चन बेंगलुरु में बेहद गंभीर हो गए और उसके बाद जब उन्हें वहाँ से मुंबई के ब्रीच कैंडी में शिफ्ट कर दिया गया, तो मेरी लगातार बच्चन जी से चिट्ठियों के माध्यम से बात होती रही, साथ ही कभी-कभार बच्चन जी को मुंबई फ़ोन करके भी मैं अमिताभ का हाल जान लेता था.

कुली' का वह हादसा

क्या था 'कुली' का वह हादसा

अमिताभ बच्चन जुलाई 1982 में कुछ दिनों से लगातार बेंगलुरु में 'कुली' फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. बेंगलुरु में शूटिंग करने का ख़ास कारण था वहां का रेलवे स्टेशन.

असल में इस तरह के स्टेशन पर शूटिंग करने की अनुमति मुंबई में नहीं मिल पा रही थी. लेकिन बेंगलुरु स्टेशन पर शूटिंग की इजाज़त मिल गई तो मनमोहन देसाई अपनी तमाम यूनिट को लेकर बेंगलुरु पहुँच गए.

शूटिंग होते हुए कुछ दिन हो चले थे. कुछ दिन बाद अमिताभ ने मुंबई से अपनी पत्नी जया बच्चन और बच्चों श्वेता और अभिषेक को भी वीकेंड पर 24 जुलाई को अपने पास बेंगलुरु बुला लिया.

अमिताभ बेंगलुरु के रेसकोर्स रोड पर अंग्रेजों के ज़माने के एक पुराने और मशहूर पंचतारा होटल 'वैस्ट एंड' में ठहरे हुए थे.

हर रोज़ की तरह 26 जुलाई को भी अमिताभ जब शूटिंग के लिए निकले, तब कोई नहीं जानता था कि आज का दिन अमिताभ बच्चन की दुनिया ही बदल देगा. यह दिन उनके लिए एक नया इतिहास लिख देगा.

उस दिन बेंगलुरु यूनिवर्सिटी के ज्ञान भारती परिसर में शूटिंग का सेट लगा था. अमिताभ सेट पर पहुंचकर कुली के गेटअप में आ गए थे.

एक फाइट सीन में फ़िल्म में खलनायाक बने अभिनेता पुनीत इस्सर ने अमिताभ को पेट में घूंसा मारना था.

रिहर्सल में यह सीन आसानी से हो गया. लेकिन शूटिंग के फ़ाइनल टेक में कुछ ऐसा हुआ कि अमिताभ के पीछे एक बोर्ड आ गया जिससे अमिताभ उससे टकरा गए और उधर कुछ ऐसा घटा कि पुनीत का घूंसा अमिताभ के पेट में इतने जोर से लगा कि वे दर्द से कराह उठे.

सीन ओके हो गया लेकिन अमिताभ को दर्द इतना हो रहा था कि वह बड़ी मुश्किल से झुककर एक कुर्सी तक पहुंचे. जब दर्द कम नहीं हुआ तो वह वहीं एक तरफ जाकर लेट गए. तब तक किसी को अहसास नहीं हुआ कि अमिताभ के साथ दुर्घटना घटी है.

अमिताभ बच्चन ने इस घटना का ज़िक्र अपने ब्लॉग पर तीन-चार बार अलग-अलग ढंग से किया है.

अगस्त 2009 में भी अमिताभ ने ब्लॉग पर इस बारे में लिखा था. अमिताभ लिखते हैं- "सीन कट होते ही मुझे बहुत तेज़ दर्द हुआ जबकि स्कूल में बॉक्सिंग के दौरान मैंने कई बार मुक्के खाए थे लेकिन उसका दर्द कुछ देर बाद ही ठीक हो जाता था. लेकिन यह दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा था. जब दर्द ठीक नहीं हुआ तो मैंने मन जी (मनमोहन देसाई) से कहा कि मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा. मुझे आज के लिए छुट्टी दे दें. फिर उनसे कार लेकर मैं होटल के लिए रवाना हो गया. वहां से होटल का 45 मिनट का उबड़-खाबड़ रास्ता भी काफी तकलीफदेह था".

"होटल पहुँचते ही मैं बेड पर गिर गया. बस मेरे अंदर इतनी हिम्मत बची थी कि मैं जया को बोल पाया कि मुम्बई से मेरे निजी चिकित्सक डॉ शाह को तुरंत बुलाओ और बच्चों को वापस घर भेज दो."

अमिताभ की खराब हालत देख जया बच्चन विचलित हो उठीं. जया ने अपने स्टाफ के साथ बच्चों को मुंबई भेज दिया और मुंबई में अपने देवर अजिताभ को फ़ोन पर सारी बात बताई और सुबह ही डॉक्टर को साथ लेकर बेंगलुरु आने को कहा.

इधर रात में मनमोहन देसाई ने वहां के दो डॉक्टर बुलाकर भी अमिताभ को दिखाया. लेकिन डॉक्टर दर्द की गोली और इंजेक्शन देकर चले गए कि कोई ख़ास बात नहीं है. दर्द ठीक हो जाएगा. लेकिन अमिताभ रात भर करीब बेहोशी जैसी हालत में दर्द से कराहते रहे.

अमिताभ

बीमारी का पता नहीं चल पा रहा था

सुबह 27 जुलाई को अजिताभ मुंबई से डॉक्टर शाह को लेकर बेंगलुरु पहुँच गए. वो अपने साथ एक्सरे की एक पोर्टेबल मशीन भी लाए थे. उन्होंने एक्सरे लिया.

लेकिन अमिताभ के लिए हिलना भी मुश्किल हो रहा था. तब डॉक्टर शाह ने स्थानीय डॉक्टर से सलाह करके, अमिताभ को वहां के सेंट फिलोमिना अस्पताल में भर्ती करा दिया.

तब तक यह समाचार पूरे देश में फ़ैल गया. पहले देश भर के दोपहर बाद के और सांध्यकालीन अखबारों में और फिर अगले दिन सभी अखबारों में यह खबर सुर्खियाँ बन गई. रेडियो पर भी यह समाचार आ गया.

फिलोमिना अस्पताल में उस समय अमिताभ बच्चन का इलाज़ करने वाले एक डॉक्टर जोसफ़ एंथनी ने उन दिनों को याद करते हुए 2012 में अपने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था- "मैं अमिताभ को पहचानता नहीं था लेकिन जब मैंने देखा अस्पताल के बाहर भारी भीड़ उनका हाल जानने के लिए खड़ी है, तब मुझे पता लगा की वह एक बड़े फ़िल्म स्टार हैं. तब तो अमिताभ जहाँ दाखिल थे उस पूरे कोरिडोर को हमने सिर्फ अमिताभ के लिए रिज़र्व कर दिया."

यह सब तो हो गया लेकिन अमिताभ की बीमारी किसी को पूरी तरह समझ नहीं आ रही थी. उधर अगले दिन तक तो अमिताभ बच्चन की दुर्घटना का यह समाचार इतना फैला कि उनके प्रशंसक बेचैन हो गए. कोई अमिताभ की इस दुर्घटना को सुनकर सहमा हुआ था तो कोई रो रहा था, बिलख रहा था.

जुलाई 1982 तक अमिताभ बच्चन अपनी जंजीर, अभिमान, चुपके चुपके, हेराफेरी, दीवार, शोले, दो अनजाने, कभी-कभी, अमर अकबर एंथनी, परवरिश, डॉन, त्रिशूल, मुकद्दर का सिकंदर, लावारिस, नसीब, सत्ते पे सत्ता और नमक हलाल जैसी कई सुपर हिट, जुबली फिल्म देने के कारण देश के सबसे बड़े सुपर स्टार बन चुके थे.

इधर फिलोमिना अस्पताल में अमिताभ की बिगड़ती हालत देख सभी परेशान थे. अस्पताल के कमरा नंबर 7 में अमिताभ बेहोशी वाली हालत में लगातार दर्द से तड़प रहे थे. उन्हें सांस लेने में भी काफी तकलीफ हो रही थी. हालात कुछ ऐसे लग रहे थे कि वह कभी भी कोमा में भी जा सकते थे.

जबकि उनके कमरे के बाहर बैठे जया, अजिताभ और अमिताभ के एक दोस्त हबीब नाडियाडवाला यह सोचकर परेशान थे कि अब क्या किया जाए. अमिताभ की इस मुश्किल घड़ी में उनके पास उनके पारिवारिक मित्र और फिल्मकार यश जौहर भी पहुँच गए थे.

जया बच्चन

तब सभी ने यह फ़ैसला लिया कि अमिताभ को शाम की फ्लाईट से मुंबई ले जाया जाए. तभी पता लगा कि अस्पताल में सर्जरी के लिए विख्यात यूरोलोजिस्ट डॉ हट्टंगडी शशिधर भट्ट आये हुए हैं.

वो इतने मशहूर और सम्मानित थे कि उन्हें 'फादर ऑफ़ यूरोलोजी इन इंडिया' भी कहा जाता था.

डॉ भट्ट किसी अन्य रोगी के लिए ऑपरेशन थिएटर में जाते उससे पहले ही जया बच्चन ने उनके पास पहुँच, उनसे गुज़ारिश की कि वह अमिताभ को भी ज़रा देख लें. वो इसके लिए सहमत हो गए. उन्होंने अमिताभ की चोट वाली जगह की सूजन और उनकी हालत देखने के बाद उनका एक्सरे देखा तो उनकी आँखें खुली रह गईं.

अमिताभ बच्चन ने इस घटना का भी एक बार जिक्र करते हुए कहा था, "डॉ भट्ट मेरे रूम के दरवाजे पर खड़े होकर ज़ोर से बोले -"इनको इसी वक्त ऑपरेटिंग टेबल पर लेकर आओ. नहीं तो शाम की फ्लाईट से आप इनकी डेड बॉडी लेकर जाएँगे."

दरअसल, अमिताभ की इसी सर्जरी के बाद पहली बार पता लगा कि उनकी आंत फट गई है. ज़हर पूरे पेट में फैल चुका है और अब वह शरीर के दूसरे अंगों पर हमला कर रहा है."

इस ऑपरेशन से इतना तो हो गया कि उस समय अमिताभ के सिर पर मंडराता मौत का ख़तरा कुछ समय के लिए टल गया. लेकिन फिलोमिना में सीमित सुविधाएं थीं इसलिए डॉ भट्ट, डॉ एंथनी और डॉ शाह ने अमिताभ को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में शिफ्ट करने का फ़ैसला किया.

उधर अमिताभ की जैसी हालत थी उसे देखते हुए उन्हें मुंबई शिफ्ट करना भी जोखिम का काम था. तब एयर एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं थी. चार्टेड प्लेन में भी ले जाने में भी कई समस्याएं थी.

इसलिए यश जौहर और जया बच्चन ने इंडियन एयरलाइन्स के उच्च अधिकारियों और मंत्रालय तक से बात की.

इसके बाद इंडियन एयर लाइन्स ने विमान के आगे के हिस्से से बिजनेस क्लास वाली सीटों की तीन पंक्तियाँ हटाकर वहां मिनी आईसीयू जैसी व्यवस्था कर दी गई. तब वहां एक स्ट्रेचर पर अमिताभ को लिटा दिया गया.

विमान में जया, अजिताभ, हबीब, मनमोहन देसाई और यश जोहर के साथ डॉक्टर्स शाह और कमांडिंग नर्स अमारिया भी अपनी टीम के साथ थे. जावेद अख्तर और उनकी पहली पत्नी हनी ईरानी भी वहां थे.

अभिषेक बच्चन के साथ अमिताभ बच्चन

अमिताभ की सेहत के लिए देश भर में प्रार्थना

विमान 31 जुलाई की रात क़रीब एक बजे बेंगलुरु से उड़ान भरकर जब रात 3 बजे के बाद मुंबई पहुंचा तो वहां मूसलाधार बारिश हो रही थी लेकिन उसके बावजूद अमिताभ की एक झलक पाने के लिए वहां लोगों का हुजूम खड़ा था.

एअरपोर्ट पर भीड़ को देखते हुए अमिताभ बच्चन के स्ट्रेचर को एक फूड सर्विस करियर में रखकर चुपचाप बाहर ले जाया गया. फिर एक एम्बुलेंस अमिताभ को लेकर तड़के ब्रीच कैंडी पहुँची.

अमिताभ बच्चन की उस बीमारी के दिनों में देश भर में मातम-सा छाया हुआ था. मैंने उस दौर को अपनी आँखों से देखा है. उस समय अमिताभ को लेकर कितने ही लोगों से बात की है.

जो लोग जानते थे कि मैं बच्चन परिवार को अच्छे से जानता हूँ. उनके संपर्क में हूँ तो उनमें से कुछ लोग मुझे कभी कोई कार्ड देता, तो कभी कोई फूल तो कभी कोई ताबीज़ कि यह आप अमिताभ जी या उनके पिताजी तक भिजवा दो, अमित जी ठीक हो जाएँगे.

मुझे याद है कि एक दिन पड़ोस के चार बच्चे रोते हुए मेरे पास आए और बोले - "हमको सच सच बताओ, अमिताभ अंकल ठीक तो हो जायेंगे न…"

मैंने जब बच्चन जी को एक दिन फ़ोन पर बताया कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल सभी तरफ अमिताभ के ठीक होने के लिए लगातार पूजा-प्रार्थना की जा रही हैं तो वह भावुक हो उठे.

वह बोलीं-" हमारे घर पर रोजाना सैंकड़ों चिट्ठियां आ रही हैं. सभी उनके लिए दुआएं कर रहे हैं. यहां तक 'प्रतीक्षा' के बाहर और अस्पताल में लोग फूलों, पूजा के धागों, तावीज़ तक बाँध कर चले जाते हैं."

उस समय के हालात पर 'इंडिया टुडे' ने अपने 31 अगस्त 1982 के अंक में लिखा था- "पूरा मुंबई ऐसे पोस्टर और बैनर से भर गया था जिसमें अमिताभ को शुभकामनाएं दी जा रही थीं. यहाँ तक लोग अखबारों में विज्ञापन देकर भी उन्हें जल्द स्वस्थ होने की शुभकामनाएं दे रहे थे. सिद्धिविनायक मंदिर में हर रोज़ कितने ही लोग आकर अमिताभ के लिए पूजा कर रहे थे."

अमिताभ के कोरोना संक्रमित होने के बाद उनके घर के बाहर मुनिसिपल कर्मचारियों की भीड़


अमिताभ के कोरोना संक्रमित होने के बाद उनके घर के बाहर मुनिसिपल कर्मचारियों की भीड़

ब्रीच कैंडी में भी मंडरा रही थी मौत
अमिताभ के ब्रीच कैंडी पहुँचने पर उनकी मां जी तेजी बच्चन और बाबू जी हरिवंशराय बच्चन भी अपने 'मुन्ना' को देखने के लिए घबराते हुए अस्पताल पहुंच गए थे.

साथ ही यश चोपड़ा, प्रकाश मेहरा, रमेश सिप्पी, संगीतकार कल्याणजी तो अमिताभ को देखने के लिए लगातार अस्पताल में ही रहे जबकि मनमोहन देसाई और यश जौहर तो लगातार बेंगलुरु से उनके साथ थे. यहाँ तक कई सितारे भी उन्हें देखने अस्पताल पहुँच गए.

अमिताभ आईसीयू में बेहद गंभीर हालत में थे. ऐसे में वहां लगातार इतने लोगों के आने से एक बार तेजी बच्चन इतना नाराज हो गईं कि दिलीप कुमार को भी उन्होंने बोल दिया कि "सॉरी आप उन्हें देखने अंदर न जाएँ." इसके बाद वहां विजिटर्स कुछ कम हुए.

हालांकि अमिताभ अपने अस्पताल के उन दिनों को याद करते हुए आज भी वहां मिले अपने दो उपहारों को हमेशा याद रखते हैं. एक वह पेंटिंग जो एमएफ हुसैन उनके लिए बनाकर लाए थे, जिसमें हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आ रहे हैं. दूसरा वह कार्टून जो बालासाहब ठाकरे बनाकार लाए, उसमें अमिताभ यमराज की पिटाई कर रहे हैं.

उधर अमिताभ की बेंगलुरु में जो सर्जरी हुई थी, उस जगह रक्तस्राव हो रहा था. तभी ब्रीच कैंडी में डॉ एफ उड़वाडिया और उनकी टीम ने अमिताभ की एक और सर्जरी की. लेकिन अमिताभ की आंत से खून बहने का सिलसिला चलता रहा जिससे उनके शरीर में खून की बेहद कमी हो गई.

बाल ठाकरे

स्थिति यह हो गई कि ब्रीच कैंडी में दाख़िल होते हुए उन्हें करीब 60 यूनिट खून चढ़ाया गया.

इधर डॉक्टर्स के भरसक प्रयासों के बाद भी दो अगस्त को अमिताभ का बीपी और पल्स ज़ीरो हो गया.

यह देख डाक्टर्स ने उम्मीद छोड़ दी. यहां तक जया को भी बोल दिया कि "अब कोई उम्मीद नहीं है. आखिरी बार अमिताभ को जाकर देख लो."

देखते-देखते वह 'क्लिनिकली डेड' हो गए. यह देख वहां कोहराम मच गया. लेकिन तभी डॉ उड़वाडिया ने एक आख]Fरी उम्मीद के रूप में एक दवाई के ओवरडोज़ के रूप में अमिताभ को कुछ इंजेक्शन दिए.

कुछ समय बाद जया ने देखा अमिताभ के पैर के अंगूठे में कुछ हरकत हुई. यह देखकर वह खुशी से चीखीं. इससे डॉक्टर्स की पूरी टीम जोश में आ गई.

अमिताभ को होश में लाने के लिए सभी ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे. कुछ ही पल बाद अमिताभ ने आँखें खोल दीं. वह सभी को विस्मय भरी नज़रों से देखने लगे. इससे सभी के मुरझाये रोते बिलखते चेहरे खिल उठे.

यादगार दिन

दो अगस्त का वह यादगार दिन
उस दिन दो अगस्त को करीब 11 मिनट तक 'क्लिनिकली डेड' होने के बाद अमिताभ की साँसें फिर लौट आईं इसलिए तभी से इस दिन को अमिताभ का पुनर्जन्म दिवस माना जाता है.

हालांकि 2 अगस्त को अमिताभ के प्राण तो लौट आए लेकिन उनके घाव से खून का थोड़ा-सा रिसाव अब भी हो रहा था.

इसको देखते हुए यश जौहर लंदन चले गए और वहां से एक मशहूर सर्जन डॉ पीटर कॉटन को अपने साथ मुंबई ले आए जिन्होंने अमिताभ की फिर एक छोटी सी सर्जरी की और एक नयी तकनीक से उनके बहते खून को रोक दिया.

AMITABH BACHCHAN

तब इंदिरा गांधी भी घबरा गईं थीं

बड़ी बात यह भी थी कि अमिताभ बच्चन की चिंता पूरे देश के साथ देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी बहुत ज़्यादा थी और उनके पुत्र राजीव गांधी और पुत्रवधू सोनिया गांधी को भी.

यह संयोग था कि जब तक अमिताभ की दुर्घटना गंभीर होने का समाचार सुर्ख़ियों में आया तब तक इंदिरा गांधी और राजीव गांधी अपनी अमरीका की सरकारी यात्रा पर निकल चुके थे. लेकिन राजीव तो अपनी यात्रा बीच में छोड़, 4 अगस्त को अपने बालसखा अमिताभ से मिलने मुंबई पहुँच गए.

इसके बाद जब इंदिरा गांधी 8 अगस्त को वापस स्वदेश लौटीं तो वह भी सीधे हवाई अड्डे से सोनिया गांधी को लेकर मुंबई, ब्रीच कैंडी पहुँच गईं. अमिताभ उन्हें देख रो पड़े. इंदिरा गांधी ने तब अमिताभ से कहा था- "बेटे, चिंता मत करो तुम बिलकुल ठीक हो जाओगे."

इस घटना का जिक्र इंदिरा गाँधी के क़रीबी रहे नेता माखनलाल फोतेदार ने अपनी पुस्तक- 'द चिनार लीव्स- ए पॉलिटिकल मेमॉयर' में भी किया था. "इंदिरा गांधी ने विदेश से लौटकर ही मुझसे कहा कि पंडित हरसुख को अस्पताल भेजो. अमिताभ की सेहत के लिए पूजा करानी है."

फोतेदार यह भी कहते हैं कि इंदिरा जी ने अगले दिन भावुक होकर एक सफ़ेद कपड़े में ताबीज़, प्रसाद और कुछ अन्य पूजा सामग्री दी कि यह अमिताभ की जिंदगी के लिए है, इसे अस्पताल भेज दो. नहीं तो राजीव अकेला हो जाएगा.

पंडित हरसुख ने वह सामग्री अमिताभ के तकिये के नीचे रखकर दस दिन तक अमिताभ के लिए पूजा की.

उधर तेजी जी और बच्चन जी भी अमिताभ की जीवन रक्षा के लिए पूजा में जुटे थे. साथ ही जया भी हर रोज अमिताभ के लिए सिद्धिविनायक जाती थीं. अमिताभ का पहले ठीक होना और फिर पूरी तरह उबर कर, फिर से जीवन में नए-नए आयाम बनाना किसी चमत्कार से कम नहीं.

राजीव गांधी और सोनिया गांधी

अमिताभ की अस्पताल में यह हालत थी कि उनके शरीर के विभिन्न भागों में दसियों ट्यूब-पाइप लगे हुए थे. उनको खाना तो फूड पाइप से ही दिया जा रहा था. यहां तक सांस लेने के लिए भी उनके गले को चीरकर एक नली लगाई हुई थी.

आईसीयू के बाद अमिताभ को ब्रीच कैंडी अस्पताल के कमरा नंबर 316 में शिफ्ट कर दिया गया. आज भी वह कमरा इसलिए चर्चित है कि कभी उसमें रहकर अमिताभ ने मौत पर विजय पाई थी.

अमिताभ ब्रीच कैंडी के इस कमरे में 24 सितम्बर दोपहर तक रहे. उसी दिन वह अपने उस घर में वापस पहुंचे जो दो महीने से उनकी प्रतीक्षा कर रहा था.

अमिताभ जब अस्पताल से बाहर निकले तो वहां तो लोगों की भारी भीड़ थी ही. रास्ते में भी कई जगह उनका स्वागत करने के लिए बहुत से लोग खड़े थे. लेकिन जब घर पहुंचे तो वहां तो इतनी भीड़ थी कि अमिताभ का घर के अंदर प्रवेश करना मुश्किल हो गया.

लोग हाथों में 'वेलकम होम' की तख्तियों और फूल लेकर ख़ुशी से, 'लॉन्ग लिव अमिताभ' और 'अमिताभ-अमिताभ' कहकर चिल्ला रहे थे. अमिताभ ने अभिभूत होकर सभी को हाथ जोड़ कर धन्यवाद कहा.

घर के अंदर प्रवेश पर पहले उनकी आरती उतारी गयी फिर अमिताभ ने आगे बढ़कर अपने पिता के पैर छुए. बच्चन जी अपने बेटे से गले मिलकर इतना भाव विभोर हुए कि वह फूटफूट कर रो पड़े.

अमिताभ ने इस पर एक बार कहा था- "यह पहला मौक़ा था जब मैंने अपनी ज़िन्दगी में बाबूजी की आँखों में आंसू देखे."

अमिताभ के घर लौटने पर मैंने भी बच्चन जी को पत्र से बधाई भेजी. तब बच्चन जी ने मुझे 8 अक्टूबर 1982 को जवाब में लिखा -"अमिताभ के घर लौटने पर बधाई के लिए सपरिवार आभारी. अमिताभ धीरे-धीरे स्वस्थ हो रहे हैं. हम लोग भी सुस्थिर. शेष सामान्य. तुम जो भी अच्छा करो, उसमें सफल रहो, हमारे आशीष". -बच्चन

अमिताभ पूरी तरह स्वस्थ तो दिसम्बर अंत तक ही हुए.

बीमारी के बाद अपनी शूटिंग की शुरुआत अमिताभ ने 7 जनवरी 1983 को 'कुली' से की. इसके लिए इस बार मुंबई के चांदीवाली स्टूडियो में 'कुली' का सेट लगा था.

न जाने कितने ही फोटोग्राफ़र इस खूबसूरत लम्हों को कैद करने के लिए बेचैन थे. जैसे ही अमिताभ ने पहला शॉट दिया सभी कैमरों की फ्लैश लाइट्स चमक उठीं.