चुरकुला नृत्य
होली ब्रज क्षेत्र का एक विशेष पर्व है, जिसमें फागुन का उल्लास गायन के रुप में पूरे ब्रज में एक नई उमंग पैदा कर देता है। इस अवसर पर पूरे ब्रज में अनेक स्थलों पर नृत्य-गायन के विभिन्न समारोह होते हैं परन्तु इन नृत्यों में चुरकुला नृत्य सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। यह नृत्य ऊमरु, खेमरी, सोंख, मुखराई आदि कुछ खास गाँवों में होता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से दर्शक उमड़ पड़ते हैं। इस नृत्य के लिए हर गाँवों में होली के आस-पास की तिथि परम्परा से निश्चित हैं, जिनमें गाँव के किसी विशाल प्रांगण में यह नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है। कोई एक महिला अपने मस्तक पर लोहे अथवा काष्ठ का बना एक लंबा, गोल, चक्राकार मंडल जिस पर एक सौ आठ जलते दीपकों की जगमग होती है, अपने सिर पर धारण करती है। उसके दोनों हाथों पर दो चमचमाते हुए लोटों पर भी दो दीपक रखे जाते है। इस प्रकार सिर पर कई पंक्तियों में जलते हुए मंडलाकार दीपों का चुरकुला तथा दोनों हाथों में दीपकों के चक्करदार लहंगा-ओढ़नी में सुसज्जित यह ग्राम वधू नृत्य करती है, तब उसकी संगत गाँव के गायक और वादक बंब (एक बहुत बड़ा नगाड़ा जिसके पहिये पर खींचकर चलाया जाता है और डंडों से पीटकर सामूहिक रुप से बजाया जाता है। झांझ, चीमटा आदि से नृत्य की संगत करते है और साखी की होली गाते हैं। रात्रि के अंधकार में मस्तक के ऊपर रखी हुई दीपमाला के प्रकाश में रंगीन परम्परागत वेशभूषा में थिरकती हुई यह ग्राम वधू अविस्मरणीय व चमात्कारिक वातावरण का निर्माण करती है। काफी समय नाचने के बाद यह चुरकुला एक स्री से दूसरी स्री के सिर पर भी चला जाता हो। इस नृत्य की तैयारी गाँवों में काफी समय पहले से की जाती है। नृत्य करने वाली महिलाओं को महीनों पहले से दूध-घी खिलाकर चुरकुला उठाने के लिए सशक्त किया जाता है।
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