मांदल नृत्य

मांदल नृत्य राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य मुख्य रूप से राजस्थान के कोटा क्षेत्र में किया जाता है। यह नृत्य गरासिया जाति की स्त्रियों द्वारा वृत्ताकार घेरा बनाकर किया जाता है।

मुसहरी नाच

'मूस' यानि चूहे का शिकार करने वाली 'मुसहर' जाति पूर्वांचल की एक विचित्र जाति है। ये गांवों के किनारे अलग बस्ती बनाकर रहते हैं और भोर ही में 'सवरी' (एक विशेष प्रकार का चूहा मारने का औजार) लेकर खेत खलिहान में पूरे परिवार के साथ निकल जाते हैं। खेत खलिहानों में बिल के भीतर चूहों द्वारा एकत्र किये गए अनाज को उसमें पानी भरकर निकालते हैं। इनका एक पंथ दो काज हो जाता है। अर्थात एक ही गोटी से दो शिकार-चूहा और अनाज। वे दिनभर की इस कमाई को लेकर आते और गांजा का दम लगाकर झंडे गाड़कर 'ढोल' और 'हुडुक' बजाकर झूमकर नाचते हैं। यह हुडुक वाद्य 'गोहटी' के चमड़े से वे स्वयं बनाते हैं।

मौनिया नृत्य

मौनिया नृत्य बुंदेलखण्ड में अहीर जाति द्वारा किया जाता है। विशेष रूप से यह नृत्य हिन्दुओं के प्रसिद्ध पर्व 'दीपावली' के दूसरे दिन किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष अपनी पारंपरिक लिवास पहनकर मोर के पंखों को लेकर एक घेरा बनाकर करते हैं।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

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