Muddugāre Yasodā - Annamayya Kriti - Sridevi Nrithyalaya - Bharathanatyam Dance
Muddugāre Yasodā - Annamayya Kriti - Sridevi Nrithyalaya - Bharathanatyam Dance
Dancer: Harinie Jeevitha
Muddugāre Yasodā
Rāgam - Kurinji
Tālam - Ādi
This composition of Annamayya equates Krishna to the nine precious gems.
He is a Pearl (Muthyam) to the affectionate Yashoda and the son of the unparalleled Devaki.
He is Ruby (Mānikyam) in the hands of Gopikas and He is the Diamond (Vajram) who defeated Kamsa. In the whole of the three worlds, He is the lustrous Emerald (Garuda Pachha); He is none other than our little Krishna!
To love struck Rukmini, He is the Coral (Pagadam) of her lips and He is the Hassonite (Gomédhikam) that lifted the Govardhana mountain. He is the precious Cat's eye (Vaidooryam) that eternally stands between Shanka and Chakra; Behold! He is the lotus- eyed one who protects those who seek refuge.
He is the Yellow Sapphire (Pushyarāgam) who conquered snake Kalinga, He is the Blue Sapphire (Indraneela) ruling us in the Venkata hills. In the mighty milky ocean, He is the unparalleled celestial gem; here He is, Padmanabha, moving around like a little boy!
Credits:
Nattuvangam - Dr. Sheela Unnikrishnan
Vocal - Sri G Srikanth
Mridangam - Sri Guru Bharadwaaj
Violin - Sri Embar Kannan
Flute - Sri Muthukumar
Musically sound designed by K K Senthil Prasath at Vanajkesav Digi Audio Waves, Chennai
Videography: Sri Sathyamurthy of Sharvesh Photography & Srijith Unni
Technical Assistance: Sri Ezhumalai
Special thanks to
Smt. & Sri L S Ravindranath & Sri Kuldeep M Pai
for all the support and guidances.
A devotional contribution by Sridevi Nrithyalaya...
Our copyright policies on SDN's productions
Since SDN is run by SRIDEVI NRITHYALAYA TRUST, all the productions of SDN, be it music or dance, become intellectual property of the Trust. Sridevi Nrithyalaya Trust (SDNT) owns all the productions and will not allow anyone to download or use SDN videos/audios, even if it is meant for non-commercial purposes.
With able legal guidance, our team works meticulously in curbing audios/videos of Sridevi Nrithyalaya that have been used in unauthorized ways and uploaded on social media. Though we do not put up copyright declarations in all our videos, we strictly adhere to legal formalities and procedures regarding copyrights.
We work hard and spend a good time and amount of our resources to produce our music and dance videos. They are produced and uploaded on our social platforms solely to take our art to all those rasikas around the globe who are unable to reach us in person to enjoy SDN's art live.
It is not about 'misuse' or 'trying to support' our dance and audio productions by just giving credits. Art is for all, for sure. Our productions uploaded on social media platforms are for the art lovers worldwide to WATCH and ENJOY but definitely not for copying or reproducing without SDNT's authorisation.
SDNT has unanimously arrived at this decision and therefore, SDN or any individual from SDN would not be able to grant anyone permission to reproduce any of our works.
All the productions of Sridevi Nrithyalaya are intellectual properties (Aural & Visual) of SRIDEVI NRITHYALAYA TRUST solely. Any person or channel infringing our copyright policies (which are mentioned in the description box in our YouTube videos) will be given a 'copyright strike' which we might not be able to redeem at any cost.
नृत्य
- भरतनाट्यम नृत्य
भरतनाट्यम नृत्य
भरतनाट्यम् नृत्य को एकहार्य के रूप में भी जाना जाता है, जहां नर्तकी एकल प्रस्तुति में अनेक भूमिकाएं करती है, यह कहा जाता है कि 19वीं सदी के आरम्भ में, राजा सरफोजी के संरक्षण के तहत् तंजौर के प्रसिद्ध चार भाईयों ने भरतनाट्यम् के उस रंगपटल का निर्माण किया था, जो हमें आज दिखाई देता है ।
भरतनाट्यम् नृत्य 2000 साल से व्यवहार में है । भरतमूनि के नाट्यशास्त्र (200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी सन्) के साथ प्रारम्भ हुए अनेक ग्रंथों (पुस्तकों) से इस नृत्य रूप पर जानकारी प्राप्त होती है । नंदिकेश्वर द्वारा रचित अभिनय दर्पण भरतनाट्यम् नृत्य में, शरीर की गेतिविधि के व्याकरण और तकनीकी अध्ययन के लिए ग्रंथीय (पुस्तकीय) सामग्री का एक प्रमुख स्रोत है । यहां प्राचीन काल की धातु और पत्थर की प्रतिमाओं तथा चित्रों में इस नृत्य रूप के विस्तूत व्यवहार के दर्शनीय प्रमाण भी मिलते हैं । चिदम्बरम् मंदिर के गोपुरमों पर भरतनाट्यम् नृत्य की भंगिमाओं की एक श्रृंखला और मूर्तिकार द्वारा पत्थर को काट कर बनाई गई प्रतिमाएं देखी जा सकती है । अनके मंदिरों में मूर्तिकला में नृत्य के चारी और कर्णा को प्रस्तुत किया गया है और इनसे इस नृतय का अध्ययन किया जा सकता है ।
भरतनाट्यम् नृत्य को एकहार्य के रूप में भी जाना जाता है, जहां नर्तकी एकल प्रस्तुति में अनेक भूमिकाएं करती है, यह कहा जाता है कि 19वीं सदी के आरम्भ में, राजा सरफोजी के संरक्षण के तहत् तंजौर के प्रसिद्ध चार भाईयों ने भरतनाट्यम् के उस रंगपटल का निर्माण किया था, जो हमें आज दिखाई देता है ।
देवदासियो द्वारा इस शैली को जीवित रखा गया । देवदासी वास्तव में वे युवतियां होती थीं, जो अपने माता-पिता द्वारा मंदिर को दान में दे दी जाती थी और उनका विवाह देवताओं से होता था । देवदासियां मंदिर के प्रांगण में, देवताओं को अर्पण के रूप में संगीत व नृत्य प्रस्तुत करती थीं । इस सदी के कुछ प्रसिद्ध गुरुओं और अनुपालकों (नर्तक व नर्तकियों) का संबंध देवदासी परिवारों से है, जिनमें बाला सरस्वती एक बहुत परिचित नाम है ।
अगला एकक, जातिस्वरम् एक लघु शुद्ध खण्ड है, जो कर्नाटक संगीत के किसी राग के संगीतात्मक स्वरों के साथ प्रस्तुत किया जाता है । जातिस्वरम् में साहित्य या शब्द नहीं होते पर अड्वू की रचना की जाती है, जो शुद्ध नृत्य क्रम-नृत्य होते हैं । यह भरतनाट्यम् नृत्य में प्रशिक्षण के आधारभूत प्रकार हैं ।
भरतनाट्यम् की एक एकल नृत्य और बहुत अधिक झुकाव अभिनय या नृतय के स्वांग पहले- नृत्य पर होता है, जहां नर्तकी गतिविधि और स्वांग द्वारा साहितय को अभिव्यक्त करती है । भरतनाट्यम् नृत्य के एक प्रदर्शन में जातिस्वरम् का अनुसरण शब्दम् द्वारा किया जाता है । साथ में गाया जाने वाला गीत आमतौर पर सर्वोच्च सत्ता (ईश्वर) की आराधना होती है ।
शब्दम् के बाद नर्तकी वर्णनम् प्रस्तुत करती है । वर्णनम् भतनाट्यम् रंगपटल की एक बहुत महत्वपूर्ण रचना है, इसमें इस शास्त्रीय नृतय-रूप के तत्व का सारांश और नृत्य तथा नृत्त दोनों का सम्मिश्रण होता है । यहां नर्तकी दो गतियों में जटिल लयात्मक नमूने प्रस्तुत करती है, जो लय के ऊपर नियंत्रण को दर्शाते हैं और उसके बाद साहितय की पंक्तियों को विभिन्न तरीकों से प्रदर्शित करती है । यह वर्णन अभिनय में नर्तकी की श्रेष्ठता है और नृत्य कलाकार की अंतहीन रचनात्मकता का प्रतिबिम्ब भी है ।
वर्णनम् भारतीय नृतय में बहुत सुंदर रचनाओं में से एक है।
भरतनाट्यम को नृत्य का सबसे पुराना रूप माना जाता है और यह शैली भारत में शास्त्रीय नृत्य की अन्य सभी शैलियो की माँ है। शास्त्रीय भारतीय नृत्य भरतनाट्यम की उत्पत्ति दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के मंदिरो की नर्तकियों की कला से हुई। भरतनाट्यम पारंपरिक सादिर और अभिव्यक्ति, संगीत, हरा और नृत्य के संयोजन से नृत्य का रूप है।
Tags
Comments
- Log in to post comments
- 633 views
- Log in to post comments
- 32 views
भरतनाट्यम नृत्य
भरतनाट्यम नृत्य शास्त्रीय नृत्य का एक प्रसिद्ध नृत्य है। भरत नाट्यम, भारत के प्रसिद्ध नृत्यों में से एक है तथा इसका संबंध दक्षिण भारत केतमिलनाडु राज्य से है। यह नाम 'भरत' शब्द से लिया गया तथा इसका संबंध नृत्यशास्त्र से है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा, हिन्दू देवकुल के महान त्रिदेवों में से प्रथम, नाट्य शास्त्र अथवा नृत्य विज्ञान हैं। इन्द्र व स्वर्ग के अन्य देवताओं के अनुनय-विनय से ब्रह्मा इतना प्रभावित हुआ कि उसने नृत्य वेद सृजित करने के लिए चारों वेदों का उपयोग किया। नाट्य वेद अथवा पंचम वेद, भरत व उसके अनुयाइयों को प्रदान किया गया जिन्होंने इस विद्या का परिचय पृथ्वी के नश्वर मनुष्यों को दिया। अत: इसका नाम भरत नाट्यम हुआ। भरत नाट्यम में नृत्य के तीन मूलभूत तत्वों को कुशलतापूर्वक शामिल किया गया है। ये हैं-
भरत नाट्यम की तकनीक में हाथ, पैर, मुख व शरीर संचालन के समन्वयन के 64 सिद्धांत हैं, जिनका निष्पादन नृत्य पाठ्यक्रम के साथ किया जाता है।
भरतनाट्यम नृत्य
मूल तत्व
भरत नाट्यम में जीवन के तीन मूल तत्व – दर्शन शास्त्र, धर्म व विज्ञान हैं। यह एक गतिशील व सांसारिक नृत्य शैली है, तथा इसकी प्राचीनता स्वयं सिद्ध है। इसे सौंदर्य व सुरुचि संपन्नता का प्रतीक बताया जाना पूर्णत: संगत है। वस्तुत: यह एक ऐसी परंपरा है, जिसमें पूर्ण समर्पण, सांसारिक बंधनों से विरक्ति तथा निष्पादनकर्ता का इसमें चरमोत्कर्ष पर होना आवश्यक है। भरत नाट्यम तुलनात्मक रूप से नया नाम है। पहले इसे सादिर, दासी अट्टम और तन्जावूरनाट्यम के नामों से जाना जाता था।
मुद्राएं
विगत में इसका अभ्यास व प्रदर्शन नृत्यांगनाओं के एक वर्ग जिन्हें 'देवदासी' के रूप में जाना जाता है, द्वारा मंदिरों में किया जाता था। भरत नाट्यम के नृत्यकार मुख्यत: महिलाएं हैं, वे मूर्तियों के अनुसार अपनी मुद्राएं बनाती हैं, सदैव घुटने मोड़ कर नृत्य करती हैं। यह नितांत परिशुद्ध शैली है, जिसमें मनोदशा व अभिव्यंजना संप्रेषित करने के लिए हस्त संचालन का विशाल रंगपटल प्रयोग किया जाता है। भरत नाट्यम अनुनादी है तथा इसमें नर्तक को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। शरीर ऐसा जान पड़ता है मानो त्रिभुजाकार हो, एक हिस्सा धड़ से ऊपर व दूसरा नीचे। यह, शरीर भार के नियंत्रित वितरण, व निचले अंगों की सुदृढ़ स्थिति पर आधारित होता है, ताकि हाथों को एक पंक्ति में आने, शरीर के चारों ओर घुमाने अथवा ऐसी स्थितियाँ बनाने, जिससे मूल स्थिति और अच्छी हो, में सहूलियत हो।