कल्याण
Gaud Sarang
यह दिन के तीसरे प्रहर में गाया जाने वाला सुमधुर राग है। सारंग अंग के सभी रागों के पश्चात इस राग को गाने की प्रथा है। इस राग का वादी स्वर गंधार और संवादी स्वर धैवत है जबकि राग सारंग में ये दोनों स्वर वर्ज्य हैं। इस राग में सिर्फ प-रे की संगति ही सारंग राग को दर्शाती है। इस राग का अपना स्वतंत्र रूप है और आरोह-अवरोह में आने वाली वक्रता से ही राग स्पष्ट होता है। ग रे म ग ; प रे सा यह स्वर संगतियां राग वाचक हैं और प्रत्येक आलाप में इसका प्रयोग होता है।
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Hameer
राग हमीर रात्रि के समय का वीर रस प्रधान और चंचल प्रक्रुति का राग है। यह कल्याण थाट का राग है। ग म नि ध ; ध ध प यह राग वाचक स्वर संगति कान में पडते ही राग हमीर का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। सा रे सा सा ; ग म नि ध इस प्रकार निषाद से धैवत पर खटके से अथवा मींड द्वारा आया जाता है। इस राग में तीव्र मध्यम के साथ पंचम लिया जाता है जैसे - म् प ग म ध। इस राग के आरोह में निषाद को वक्र रूप में लिया जाता है जैसे - ग म ध नि ध सा'। वैसे ही अवरोह में गंधार को वक्र रूप मे लिया जाता है जैसे - म प ग म रे सा।
राग के अन्य नाम
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Hindol
यह राग मधुर परन्तु गाने में कठिन है इसीलिए इसे गुरु मुख से सीखना ही उचित है। इस राग में मध्यम तीव्र है और इसे गाने के लिए बहुत रियाज़ की आवश्यकता है। यह राग ज्यादा प्रचलन में नहीं है। यह स्वर संगतियाँ राग हिंडोल का रूप दर्शाती हैं -
सा ; ग म् ध ग म् ग ; म् ग ; ग सा ; ,ध ,ध सा ; ,नि ,म् ,ध सा ; सा ग म् ध ; ग म् ग ; म् ध सा' ; नि म् ध ; ग म् म् ग ; सा ; ,ध ,ध सा;
राग के अन्य नाम
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Bhoopali
यह राग भूप के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तथा चलन अधिकतर मध्य सप्तक के पूर्वांग व मन्द्र सप्तक में किया जाता है। यह चंद्र प्रकाश के समान शांत स्निग्ध वातावरण पैदा करने वाला मधुर राग है। जिसका प्रभाव वातावरण में बहुत ही जल्दी घुल जाता है। रात्रि के रागों में राग भूपाली सौम्य है। शांत रस प्रधान होने के कारण इसके गायन से वातावरण गंभीर व उदात्त बन जाता है। राग भूपाली कल्याण थाट का राग है।
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Yaman
प्रथम पहर निशि गाइये ग नि को कर संवाद।
जाति संपूर्ण तीवर मध्यम यमन आश्रय राग ॥
राग का परिचय -
1) इस राग को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है (जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो)। मुगल शासन काल के दौरान, मुसलमानों ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरु किया।
2) इस राग की विशेषता है कि इसमें तीव्र मध्यम का प्रयोग किया जाता है। बाक़ी सभी स्वर शुद्ध लगते हैं।
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Shyam Kalyan
राग श्याम कल्याण बडा ही मीठा राग है। यह कल्याण और कामोद अंग (ग म प ग म रे सा) का मिश्रण है।
इस राग को गाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। गंधार आरोह मे वर्ज्य नही है, तब भी ग म् प नि सा' नही लेना चाहिये, बल्कि रे म् प नि सा' लेना चाहिये। गंधार को ग म प ग म रे साइस तरह आरोह में लिया जाता है। सामान्यतः इसका अवरोह सा' नि ध प म१ प ध प ; ग म प ग म रे सा इस तरह से लिया जाता है। अवरोह में कभी कभी निषाद को इस तरह से छोड़ा जाता है जैसे - प सा' सा' रे' सा' नि सा' ध ध प।
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Shuddha Sarang
दिन के रागों में राग शुद्ध सारंग एक बहुत ही प्रभावशाली राग है जो की श्रोताओं पर गहरा प्रभाव डालता है। अवरोह में दोनों मध्यम लगाते हुए रिषभ पर आया जाता है (म् म रे) जिससे यह राग स्पष्ट रूप से सामने आता है। इसी प्रकार सा ; ,नि ,ध सा ,नि रे सा यह राग वाचक स्वर संगती है। सामान्यतया इस राग का आरोह सा रे म१ प नि सा है परन्तु कभी कभी म् प ध नि सा इस तरह से भी लिया जाता है। इसीलिए इस राग की जाती षाढव - षाढव ही मानना उचित है। अवरोह में धैवत पर न्यास नहीं किया जाता परन्तु निषाद से पंचम मींड लेते हुए इसका प्रयोग किया जाता है जैसे -
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Shuddha Kalyan
राग शुद्ध कल्याण में आरोह में राग भूपाली और अवरोह में राग यमन के स्वर प्रयुक्त होते हैं। इस राग को भूप कल्याण के नाम से भी जाना जाता है परन्तु इसका नाम शुद्ध कल्याण ही ज्यादा प्रचलित है।
अवरोह में आलाप लेते समय, सा' नि ध और प म् ग को मींड में लिया जाता है और निषाद और मध्यम तीव्र पर न्यास नहीं किया जाता। तान लेते समय, अवरोह में निषाद को उन्मुक्त रूप से लिया जाता है पर मध्यम तीव्र को छोड़ा जा सकता है। यह स्वर संगति राग स्वरूप को स्पष्ट करती है -
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Saraswati Kedar
राग सरस्वती केदार, राग सरस्वती और राग केदार के मिश्रण से बना है। राग सरस्वती के स्वर - रे म् म् प; म् प धनि१ ध प; ,नि१ ,ध सा; और राग केदार के स्वर - म् प ध नि सा'; पध प म; म ग प ; सा' रे' सा' ; म' म' रे' सा' ; मिल कर एक नया और अद्भुत वातावरण पैदा करते हैं। गंधार का अवरोह में बहुत ही अल्प मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
माधुर्य से परिपूर्ण राग सरस्वती केदार की रचना आचर्य विश्वनाथ राव रिंगे 'तनरंग' द्वारा की गई है। यह स्वर संगतियाँ राग सरस्वती केदार का रूप दर्शाती हैं -
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Kedar
Raga Kedar, also known as Kedara, is a Hindustani classical raga. Named after Lord Shiva, the raga occupies a high pedestal in Indian classical music. It is characterised by many melodious turns. This raga is the repetition of the swaras सा and म. It is generally accepted that it displays much thermal energy and is regarded as the Raagini of Raag Deepak. While preceding from Shuddha Madhyam (m) to Pancham (P), a touch of Gandhar (G) or a smooth passage from Gandhar (G) to Pancham (P) expressed as m G P is the more common way of instant raga manifestation
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