देवगंधार
राग देवगंधार को गाने बजाने का समय दिन का दूसरा पहर माना गया है. इस राग के बारे में एक और कहानी बहुत प्रचलित है. कहते हैं कि पहले इस राग का नाम द्विगंधार था. ऐसा इसलिए क्योंकि इस राग में दोनों ‘ग’ लगते हैं. बाद में यही द्विगंधार धीरे-धीरे देवगंधार हो गया. राग देवगंधार उत्तरार्ध प्रधान राग है. राग देवगंधार राग आसावरी और राग जौनपुरी से मिलता जुलता राग है लेकिन आलाप के आखिर में ‘ग’ का प्रयोग इसे अपने जैसी रागों से अलग करता है. आइए आपको राग देवगंधार का आरोह-अवरोह और पकड़ भी बताते हैं.
आरोह- सा रे म प, नी ध S नी सां
अवरोह- सां नी ध S प, ध म प ग S रे सा, रे ग म प ग रे सा
पकड़- ध म प ग S सा रे सा, रे नी सा रे ग S म
इस राग को और विस्तार से समझने के लिए आप राग देवगंधार के बारे में बनाया गया ये वीडियो देख सकते हैं. वीडियो भले ही पंजाबी में है लेकिन इसे आप आसानी से समझ सकते हैं. राग देवगंधार में दरअसल कीर्तन काफी होते हैं.
अब आपको राग देवगंधार का शास्त्रीय पक्ष बताते हैं. राग देवगंधार आसावरी थाट का राग माना जाता है. इसमें ‘ध’, ‘नी’ कोमल और दोनों गंधार इस्तेमाल किए जाते हैं. आरोह और अवरोह में सात-सात सुर होने की वजह से इस राग की जाति संपूर्ण होती है. राग देवगंधार में वादी सुर ‘ध’ और संवादी ‘ग’ है. वादी और संवादी शब्द की आसान समझ के लिए हम आपको बताते रहे हैं कि शतरंज के खेल में जो महत्व बादशाह और वजीर का होता है वही महत्व किसी भी शास्त्रीय राग में वादी संवादी सुरों का होता है.
Dev Gandhar
Dev Gandhar
Thaat: Asavari
Jati: Audav-Sampooran (5/7)
Vadi: D
Samvadi: G
Vikrit: G,D,N komal
Virjit: R, D in Aroh
Aroh: S g m P n S*
Avroh: S* n d P m g R S
Time: Day Second Pehar
इस राग का विस्तार राग जौनपुरी के समान होता है। राग गांधारी भी इसके पास का राग है परन्तु राग गांधारी में कोमल रिषभ लिया जाता है। जबकि देव गंधार में रिषभ शुद्ध है। जौनपुरी और गांधारी में आरोह में गंधार वर्ज्य है। परन्तु देव गंधार में आरोह में शुद्ध गंधार लिया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग देव गन्धार का रूप दर्शाती हैं -
राग के अन्य नाम
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