तत् वाद्य अथवा तार वाद्य
वीणा
वीणा भारत के लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत में किया जाता है। वीणा सुर ध्वनिओं के लिये भारतीय संगीत में प्रयुक्त सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र है। समय के साथ इसके कई प्रकार विकसित हुए हैं -रुद्रवीणा, विचित्र वीणा वगैरह लेकिन इसका प्राचीनतम रूप एक-तन्त्री वीणा है। ऐसा कहा जाता है कि मध्यकाल में अमीर खुसरो दहलवी ने सितार की रचना वीणा और बैंजो (जो इस्लामी सभ्यताओं में लोकप्रिय था) को मिलाकर किया, कुछ इसे गिटार का भी रूप बताते हैं। सितार पूर्ण भारतीय वाद्य है क्योंकि इसमें भारतीय वाद्यों की तीनों विशेषताएं हैं। वीणा वस्तुत: तंत्री वाद्यों का संरचनात्मक नाम है। तंत्री य
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सारंगी
सारंगी एक गायकी प्रधान भारतीय शास्त्रीय संगीत का वाद्य यंत्र है। प्राचीन काल में सारंगी घुमक्कड़ जातियों का वाद्य था। इसका प्राचीन नाम सारिंदा था, जो कालांतर में सारंगी हुआ। एक मत यह भी है कि यह नाम हिन्दी के सौ और रंग शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ सौ रंगों वाला होता है। इसे इस प्रकार देख सकते है, भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रो में सौ प्रकार की धुनों को निकालने वाला यह एक वाद्ययंत्र है। सारंगी दो प्रकार की प्रयोग में लाई जाती हैं। एक सिंधी सारंगी व दुसरी गुजरातन सारंगी। सिंधी सारंगी थोड़ी बड़ी होती है, वहीं गुजरातन सारंगी थोड़ी छोटी होती है जिसे गुजरात में बनाया जाता है। सारंगी क
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तानपूरा
तानपूरा अथवा ""तम्बूरा"" भारतीय संगीत का लोकप्रिय तंतवाद्य यंत्र है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है। तानपूरे में चार तार होते हैं सितार के आकार का पर उससे कुछ बड़ा एक प्रसिद्ध बाजा जिसका उपयोग बड़े बड़े गवैये गाने के समय स्वर का सहारा लेने के लिए करते हैं।
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एकतारा
एकतारा अथवा इकतारा भारतीय संगीत का लोकप्रिय तंतवाद्य यंत्र है जिसका प्रयोग भजन या सुगम संगीत में किया जाता है। इसमें एक ही तार लगा होता है। भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मिस्र के पारंपरिक संगीत में इसका प्रयोग होता है। इकतारा मूलतः भारतीय कवियों तथा घुमक्कड़ गवैयों द्वारा प्रयोग किया जाता था। निचला गुंजयमान यंत्र वे लौकी से बनाते थे, और ऊपर का गला बनाने के लिए बांस का प्रयोग करते थे। .
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