घन वाद्य या आघात वाद्य ( ठोस वाद्य, जिन्हें समस्वर स्तर में करने की आवश्यकता नहीं होती। )
झांझ
करताल का बड़ा आकार ही झांझ कहलाता है। आकार में बड़ा होने की वजह से इसकी आवाज में करताल से ज्यादा गूंज होती है। थाला कांसा से निर्मित थाली होती है। इसका गोलाकार किनारा दो-तीन इंच उठा हुआ होता है। बीच में छेद होता है, जिसमें रस्सी पिरोकर झुलाया जाता है। बायें हाथ से रस्सी थाम कर हाथ दायें से इसे भुट्टे की खलरी से बजाया जाता है।
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करताल
करताल में दस इंच व्यास के दो चपटे व गोलाकार प्याले होते हैं। इन प्यालों के बीच का हिस्सा उपर की ओर उभरा रहता है। उभरे हिस्से के बीच में छेद होता है। छेद में रस्सी पिरो दी जाती है। रस्सियों को हाथों की उंगलियों में फंसाकर दोनों प्यालों से ताली बजाने की तर्ज पर एक-दूसरे पर चोट की जाती है।
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काठी
काठी भी घन वाद्य है। इसमें 'कुडची' की लकड़ी के दो टुकड़े होते हैं। वे जब आपस में टकराते हैं तो मीठी आवाज निकलती है।
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मंजीरा
मंजीरा भजन में प्रयुक्त होने वाला एक महत्वपूर्ण वाद्य है। इसमें दो छोटी गहरी गोल मिश्रित धतु की बनी कटोरियां जैसी होती है। इनका मध्य भाग गहरा होता है। इस भाग में बने गड्ढे के छेद में डोरी लगी रहती है। ये दोनों हाथ से बजाए जाते हैं, दोनों हाथ में एक-एक मंजीरा रहता है। इसे ढोलक व तबले के साथ में सहायक यंत्र के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
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