शख्सियत
उस्ताद मोहम्मद हनीफ खान मिराजकर
उस्ताद मोहम्मद हनीफ खान मिराजकर का जन्म 1938 में संगीतकारों के परिवार में हुआ था। वह महान तबला वादक, स्वर्गीय उस्ताद महबूब खान मिराजकर के बेटे और शिष्य हैं। उन्होंने तबला को अपने बड़े भाई स्वर्गीय उस्ताद अब्दुल खान मिराजकर से भी सीखा है। उन्हें बनारस के उस्ताद जहाँगीर खान के अधीन सीखने का अवसर भी मिला है, जिनकी आड़ में उन्होंने कई दुर्लभ तबला रचनाएँ सीखीं। उस्ताद मोहम्मद हनीफ खान 1986 में एक पूर्णकालिक तबला शिक्षक बन गए। वह कई पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता हैं, सबसे हाल ही में मलेशिया में मंदिर कला ललित कला इंटरनेशनल द्वारा "लया वादन रत्न", "संगीत" साधना से "कलाश्री" "2000 में पुणे में, 1997 म
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शास्त्रीय गायक और संगीतज्ञ पंडित ओंकारनाथ ठाकुर
पंडित ओंकारनाथ ठाकुर (24 जून 1897 - 29 दिसंबर 1967), उनका नाम अक्सर पंडित शीर्षक से पहले था, एक प्रभावशाली भारतीय शिक्षक, संगीतज्ञ और हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक थे। उन्हें "प्रणव रंग", उनके कलम-नाम के रूप में प्रसिद्ध है। शास्त्रीय गायक के एक शिष्य पं। ग्वालियर घराने के विष्णु दिगंबर पलुस्कर, वे लाहौर के गंधर्व महाविद्यालय के प्राचार्य बने और बाद में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संगीत संकाय के पहले डीन बने।
• प्रारंभिक जीवन और प्रशिक्षण:
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गायक, गीतकार और संगीतकार पंडित के जी गिंडे
हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक, शिक्षक, संगीतकार और विद्वान, पं। कृष्ण गुंडोपंत गिंडे प्रसिद्ध रूप से पं। के जी गिंदे का जन्म 26 दिसंबर, 1925 को कर्नाटक के बेलगाम के पास बैल्हंगाल में हुआ था। उन्होंने कम उम्र से ही संगीत में रुचि दिखाई और अपना पूरा जीवन इसकी खोज में लगा दिया। वह पं। का शिष्य बन गया। 11 वर्ष की आयु में एस एन रतनजंकर और रत्नाकर के घर का सदस्य बनने के लिए लखनऊ चले गए। एस। एन। रंजनकर भाटखंडे द्वारा स्थापित मैरिस कॉलेज ऑफ़ म्यूज़िक के प्राचार्य थे।
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रवीन्द्रनाथ टैगोर : संगीत, कला और साहित्य का विलक्षण संगम
भारतीय राष्ट्रगान की रचयिता और काव्य, कथा, संगीत, नाटक, निबंध जैसी साहित्यिक विधाओं में अपना सर्वश्रेष्ठ देने वाले और
चित्रकला के क्षेत्र में भी कलाकार के रूप में अपनी पहचान कायम करने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को जोड़ासांको में हुआ था।
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अमीर ख़ुसरो जीवनी
अबुल हसन अमीर ख़ुसरु चौदहवीं सदी के आसपास दिल्ली के पास रहने वाले एक प्रमुख कवि (शायर), गायक और संगीतकार थे। खुसरो को हिन्दुस्तानी खड़ीबोली का पहला लोकप्रिय कवि माना जाता है।किसके द्वारा? वे अपनी पहेलियों और मुकरियों के लिए जाने जाते हैं। सबसे पहले उन्हीं ने अपनी भाषा को हिन्दवी का उल्लेख किया था। वे फारसी के कवि भी थे। उनको दिल्ली सल्तनत का आश्रय मिला हुआ था। उनके ग्रंथो की सूची लम्बी है। साथ ही इनका इतिहास स्रोत रूप में महत्त्व है।
आरंभिक जीवन :
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हनी सिंह
हनी सिंह (जिन्हें यो! यो! हनी सिंह के नाम से भी जाना जाता है) एक पंजाबी रैप गायक, संगीतकार, गायक और फिल्म अभिनेता हैं। हनी सिंह ने अपने कार्यकाल की शुरुआत एक सत्र और रिकॉर्डिंग कलाकार के तौर पर २००६ में की थी और जल्द ही वह एक भांगड़ा संगीतकार बन गए। हनी सिंह ने अपना हाथ बॉलीवुड में भी आज़माया है और वर्तमान में वो किसी एक गाने के लिए सबसे ज्यादा पारिश्रमिक लेने वाले कलाकार बन गए है। आजकल लगभग हर फिल्म में उनका एक गाना होता ही है। रैप गायन इन्होने इंगलैंड के ट्रिनिटी विश्वविद्दालय (स्कूल ऑफ ट्रिनिटी) में सीखा था।
प्रारंभिक जीवन :
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एल. सुब्रमण्यम
एल. सुब्रमण्यम एक प्रतिभाशाली भारतीय वायलिन वादक, संगीतकार और दक्षिण भारतीय एवं पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का कर्नाटक संगीत के साथ कुशल संयोजक करनेवाले प्रतिभाशाली कलाकार हैं. इनके द्वारा संयोजित संगीत की धुनें अपने-आप में अनोखी हैं. ये महज एक वायलिन वादक ही नहीं हैं अपितु इन्हें संगीत के क्षेत्र में तकनीक और नये प्रयोगों के क्रांतिकारी परिवर्तनकर्ता के रूप में जाना जाता है.
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तानसेन
तानसेन का जन्म सन् 1506 में हुआ था. जिनका नाम तब तन्ना पड़ा था. संगीत का और ज्ञान अर्जित करने के लिए उन्हें स्वामी जी ने हजरत मुहम्मद गौस के पास ग्वालियर भेज दिया. संगीत का पर्याप्त ज्ञान अर्जित करने के बाद तानसेन पुनः स्वामी हरिदास के पास मथुरा लौट आये. यहाँ उन्होंने स्वामी जी से ‘नाद’ विद्या सीखी. अब तक तानसेन को संगीत में अद्भुत सफलता मिल चुकी थी. इनके संगीत से प्रभावित होकर रीवां – नरेश ने इन्हें अपने दरबार का मुख्य गायक बना दिया. रीवां – नरेश के यहाँ अकबर को तानसेन का संगीत सुनने का अवसर मिला.
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पुरन्दर दास जीवनी
सोलहवीं शताब्दी का समय, कर्नाटक के विजयनगर राज्य के उत्कर्ष का शानदार समय था। विजय नगर के सम्राट कृष्णदेव राय न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक बल्कि सामाजिक क्षेत्र के भी उस दौर के सबसे महानतम राजाओं में प्रसिद्ध थे। इस राज्य का, भक्ति काल को बुलंदियों पर पहुँचाने का विशेष योगदान है। इसी राज्य की बहुमूल्य भेंट है- श्रेष्ठ कवि, महान संगीतकार, धर्म का अवतार महान संत श्री पुरन्दरदास।
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वायलिन वादक डा. एन राजम
डॉ एन राजम (जन्म 16 अप्रैल 1938) एक भारतीय वायलिन वादक हैं जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का प्रदर्शन करते हैं। वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संगीत की प्राध्यापिका रहीं, अंतत: विभागाध्यक्ष और विश्वविद्यालय के कला संकाय के डीन बनीं।
उन्हें 2012 के संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया, संगीत नाटक अकादमी, भारत की राष्ट्रीय संगीत अकादमी, नृत्य और नाटक द्वारा प्रदत्त प्रदर्शन कला में सर्वोच्च सम्मान।
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