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राजस्थान

कच्छी घोड़ी नृत्य

कच्छी घोड़ी नृत्य भारतीय राज्य राजस्थान का एक लोकनृत्य है। यह राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र से आरम्भ हुआ नृत्य है। यह केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि भारत के अन्य भागों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात आदि में भी प्रसिद्ध है। इसमें नर्तक नकली घोड़ों पर सवारी करते है। इसका प्रदर्शन सामाजिक एवं व्यावसायिक दोनों तरह से होता है। यह नृत्य दूल्हा पक्ष के बारातियों के मनोरंजन करने के लिए व अन्य खुशी अवसरों पर भी प्रदर्शित किया जाता है।

अग्नि नृत्य

अग्नि नृत्य राजस्थान के लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य 'अग्नि' अर्थात् धधकते हुए अंगारों के बीच किया जाता है। इस नृत्य में केवल पुरुष भाग लेते हैं, स्त्रियों का भाग लेना वर्जित है। बीकानेर में यह नृत्य विशेष तौर पर किया जाता है।

गरबा नृत्य

गरबा गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य जिसका मूल उद्गम गुजरात है। आजकल इसे आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त हो गया है। इस रूप में उसका कुछ परिष्कार हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है। 

कालबेलिया नृत्य

किसी भी आनंदप्रद अवसर पर किया जाने वाला कालबेलिया नृत्य इस जनजाति की संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह नृत्य और इस से जुड़े गीत इनकी जनजाति के लिए अत्यंत गौरव की विषय हैं। यह नृत्य संपेरो की एक प्रजाति द्वारा बदलते हुए सामाजिक-आर्थिक परस्थितियों के प्रति रचनात्मक अनुकूलन का एक शानदार उदाहरण है। यह राजस्थान के ग्रामीण परिवेश में इस जनजाति के स्थान की भी व्याख्या करता है। प्रमुख नर्तक आम तौर पर महिलाएँ होती हैं जो काले घाघरे पहन कर साँप के गतिविधियों की नकल करते हुए नाचती और चक्कर मारती है। शरीर के उपरी भाग में पहने जाने वाला वस्त्र अंगरखा कहलाता है, सिर को ऊपर से ओढनी द्वारा ढँका जाता है और निचल

चरकुला नृत्य

जनपद की इस नृत्य कला ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूम मचायी है पूर्व में होली या उसके दूसरे दिन रात्रि के समय गांवों में स्त्री या पुरुष स्त्री वेश धारण कर सिर पर मिट्टी के सात घड़े तथा उसके ऊपर जलता हुआ दीपक रखकर अनवरत रूप से चरकुला नृत्य करता था। गांव के सभी पुरुष नगाड़ों, ढप, ढोल, वादन के साथ रसिया गायन करते थे।

ख़्याल नृत्य

ख़्याल नृत्य पश्चिमोत्तर भारत में स्थित राजस्थान राज्य के कई हिंदुस्तानी लोकनृत्य नाटकों में से एक है। ख़्याल नृत्यों का प्रचलन 16वीं सदी से है, जो लोककथाओं एवं पौराणिक कहानियों से अपनी कथावस्तु लेते हैं।

ढोल नृत्य

विवाह आदि मांगलिक अवसरों पर किया जाने वाला जालोर का ढोल नृत्य राजस्थान का एक प्रमुख लोकनृत्य है । प्रायः सरगरा, ढोली और भील जातियों द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य प्ररूष प्रधान नृत्य है । इस नृत्य में एक कलाकार दो-तीन ढोल अपने शरीर पर रखकर उन्हें बजाता है और कई कलाकार एक साथ मिलकर कई ढोल बजाते हैं । किवदंती है कि जब जालोर बसा था उन्हीं दिनों सिवाणा गांव के खींवसिंह राठौड़ का सरगरा जाति की युवती से प्रेम हो गया और वह सिवाणा छोड़कर जालोर आ गया । यहां आकर खींवसिंह ढोल बजाने लग गया और जालोर का ढोल नृत्य प्रसिद्ध हो गया । जब एक वादक तीन ढोल एक साथ रखता है, तब वह एक अपने सिर पर रखता है, एक सामने की

गौरी नृत्य

गौरी नृत्य धर्म और आस्था का प्रतीक है। राजस्थान के आदिवासियों की विभिन्न आंचलिक लोक नृत्यों की श्रृंखला में गौरी नृत्य का विशेष स्थान है। इस नृत्य में मनोरंजन के साथ-साथ धार्मिक परंपरा का विशेष रूप से समावेश किया गया है। अपनी कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए किया जाने वाला यह नृत्य राजस्थान और गुजरात में बसे भीलों में काफ़ी प्रचलित है।

चकरी नृत्य

चकरी नृत्य राजस्थान राज्य के लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य हाड़ौती अंचल (कोटा, बारां और बूंदी) की कंजर जाति की युवतियों द्वारा विभिन्न अवसरों पर किया जाता है। इस नृत्य में युवतियाँ बड़ा-सा घाघरा पहनती हैं, जो बहुत ही आकर्षक सजावट वाला होता है।

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