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मध्य प्रदेश

कांडरा नृत्य

कांडरा नृत्य में नाचने वाला मठा बिलोने की कड़ैनियाँ, जो घेर-घेर घूमती है, के समान घूम-घूमकर नृत्य करता है। नृत्य करने वाले की वेशभूषा बड़ी मनोहर होती है। वह सफ़ेद रंग का बागा[3] पहनता है, सिर पर पाग बाँधता है और पाग में हरे पंख की कलगी लगी रहती है तथा पैरों में घुंघरू बाँधा जाता है। कांडरा नृत्य में 'बिरहा' गीत गाये जाते हैं।

काठी नृत्य

काठी देवी के कारण ही इसे 'काठी नृत्य' के नाम से जाना जाता है, जबकि काठियावाड़ को इस नृत्य का जन्म स्थल माना जाता है। माता के आराधक 'भगत' नाम से पुकारे जाते हैं।

भगोरिया नृत्य

भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूँढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हाँ समझी जाती है। इसके बाद लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से भाग जाता है और दोनों विवाह कर लेते हैं। इसी तरह यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है। 

ढिमरया नृत्य

ढिमरया नृत्य बुंदेलखण्ड का लोक नृत्य है। इस नृत्य में स्त्री तथा पुरुष दोनों समान रूप से भाग लेते हैं। विवाह आदि के शुभ अवसर पर यह नृत्य किया जाता है। बुंदेलखंड में ढीमरों के नृत्य अपना विशेष स्थान रखते हैं। 'ढिमरया नृत्य' शादियों में नाचा जाता है।

गणगौर नृत्य

पण्डवानी नृत्य भारत में प्रचलित कुछ प्रमुख लोक नृत्य शैलियों में से एक है। यह नृत्य छत्तीसगढ़ क्षेत्र में प्रचलित एकल लोक नृत्य है, जिसका प्रस्तुतीकरण समवेत स्वरों में होता है।

इसमें आंगिक क्रियाओं के साथ-साथ गायन भी एक ही व्यक्ति द्वारा एकतारा लेकर किया जाता है।इसमें नर्तक पाण्डवों की कथा को वाद्ययंत्रों की धुन पर गाता जाता है तथा उनका अभिनय भी करता जाता है।वर्तमान समय में यह काफ़ी लोकप्रिय नृत्य शैली है।इसके प्रमुख कलाकारों में झाडूराम देवांगन, तीजनबाई तथा ऋतु वर्मा के नाम काफ़ी प्रसिद्ध हैं।

कोलिहा नृत्य

इन लोगों की रंग बिरंगी पोशाक, खुशमिज़ाज, व्यक्तित्व और विशिष्ट पहचान उनके नृत्य में भी झलकती है। महिलाएँ और पुरुष दोनों ही इस नृत्य में भाग लेते हैं।

दिवारी नृत्य

दिवारी मध्य प्रदेश का परिद्ध लोक नृत्य है। 

बुन्देलखण्ड की मिट्टी में अभी भी पुरातन परम्पराओं की महक रची बसी है। बुन्देलखण्ड की दिवारी समूचे देश में अनूठी है। इसमें गोवंश की सुरक्षा, संरक्षण, संवद्धन, पालन के संकल्प का इस दिन कठिन ब्रत लिया जाता है।

नवरता नृत्य

स्थानीय त्‍यौहारों पर बुंदेलखंड में विभिन्न प्रकार के लोक नृत्य किये जाते हैं, जिनमें बधाई नृत्य, कानड़ा नृत्य, बरेदी नृत्य, ढिमरयाई नृत्य, नौरता नृत्य, दुलदुल घोड़ी नृत्य लाकौर या रास बधावा नृत्य, बहू उतराई का नृत्य और राई लोक नृत्य प्रमुख हैं। इन नृत्यों में से बधाई नृत्य और राई नृत्य ऐसे हैं जो सालभर चलते रहते हैं।

बधाई नृत्य

बधाई नृत्य मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। पुरुष एवं महिलाओं द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य पुत्र जन्म और विवाह आदि के मांगलिक अवसरों पर शीतला माता की आराधना में किया जाता है।

मौनिया नृत्य

मौनिया नृत्य बुंदेलखण्ड में अहीर जाति द्वारा किया जाता है। विशेष रूप से यह नृत्य हिन्दुओं के प्रसिद्ध पर्व 'दीपावली' के दूसरे दिन किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष अपनी पारंपरिक लिवास पहनकर मोर के पंखों को लेकर एक घेरा बनाकर करते हैं।

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