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कान्हा बंसी वारो राधा जी को प्यारो

काफी कान्हडा

इसे काफी थाट जन्य माना गया है। गंधार और निषाद कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। जाति वक्र सम्पूर्ण है। वादी स्वर पंचम और संवादी षडज माना जाता है। रात्रि के दूसरे प्रहर में इसे गाते बजाते है।

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