औडव - औडव
अभोगी कान्ह्डा
राग अभोगी कान्हड़ा दक्षिण भारतीय पद्धति का राग है। इसमें कान्हड़ा का अंग है, इसलिये गन्धार को अन्दोलित करते हुए ग१ म रे सा ऐसे वक्र रूप मे लिया जाता है। कुछ संगीतकार इस राग को कान्हड़ा अंग के बिना गाते हैं और उसे सिर्फ अभोगी बोलते हैं जिसमें ग म रे सा की जगह म ग रे सा लिया जाता है।
इस राग की प्रकृति गंभीर है। इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग अभोगी कान्हड़ा का रूप दर्शाती हैं -
सा रे ,ध सा ; रे ग१ म ; ग१ म ध सा' ; सा' ध म ; ध म ग१ रे ; ग१ म रे सा ; रे ,ध सा ; रे ग१ म रे सा ;
- Read more about अभोगी कान्ह्डा
- Log in to post comments
- 4458 views
हेमश्री
माधुर्य से परिपूर्ण राग हेमश्री की रचना आचर्य विश्वनाथ राव रिंगे 'तनरंग' द्वारा की गई है.
यह स्वर संगतियाँ राग हेमश्री का रूप दर्शाती हैं -
सा ग१ म प म ; ग१ म प नि१ प नि नि सा' ; नि सा' ग१' नि सा' ; प नि सा' नि१ प ; नि१ प म ग१ म ; ग१ म प म ग१ सा ; ,नि ,नि सा ; ,प ,नि सा ग१ ,नि सा;.
- Read more about हेमश्री
- Log in to post comments
- 296 views
हंसध्वनी
यह राग कर्नाटक संगीत पद्धति से हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में सम्मिलित किया गया है। यह राग, राग शंकरा के करीब का राग है, पर इसमें धैवत वर्ज्य है। राग हंसध्वनि में नि प सा' नि ; प नि प ग ; ग प ग रे सा लिया जाता है और राग शंकरा में नि ध सा' नि ; प ध प ग ; ग प रे ग रे सा ; लिया जाता है।
यह स्वर संगतियाँ राग हंसध्वनि का रूप दर्शाती हैं - ,नि रे ग सा ; ग प ग ; रे प ग ; नि प ग रे ; ग रे ग रे सा ; ,नि ,प ,नि रे ,नि ,प सा;
- Read more about हंसध्वनी
- Log in to post comments
- 4210 views
हरिकौन्स
यह स्वर संगतियाँ राग हरिकौन्स का रूप दर्शाती हैं -
सा ,नि१ ,ध ; ,ध ,नि१ ,ध ,म् ,ग१ ; ,ग१ ,म् ,ध ,नि१ ; ,नि१ ,नि१ सा ; सा ग१ म् ध नि१ सा' ; सा' नि१ ध नि१ ध म् ; ग१ म् ग१ सा ,ध ,नि१ सा ; ,नि१ सा ,ध ,नि१ ग१ सा ; सा ग१ म् ; म् म् ग१ म् ध ; म् म् ध ; ध नि१ नि१ ध ; ध म् ग१ म् ; ग१ ग१ सा ; सा' नि१ ध म् नि१ ध म् ग१ सा;
- Read more about हरिकौन्स
- Log in to post comments
- 393 views
हिन्डोल
यह राग मधुर परन्तु गाने में कठिन है इसीलिए इसे गुरु मुख से सीखना ही उचित है। इस राग में मध्यम तीव्र है और इसे गाने के लिए बहुत रियाज़ की आवश्यकता है। यह राग ज्यादा प्रचलन में नहीं है। यह स्वर संगतियाँ राग हिंडोल का रूप दर्शाती हैं -
सा ; ग म् ध ग म् ग ; म् ग ; ग सा ; ,ध ,ध सा ; ,नि ,म् ,ध सा ; सा ग म् ध ; ग म् ग ; म् ध सा' ; नि म् ध ; ग म् म् ग ; सा ; ,ध ,ध सा;
राग के अन्य नाम
- Read more about हिन्डोल
- 1 comment
- Log in to post comments
- 1293 views
भूपाल तोडी
राग भूपाल तोडी, शुद्धता और पवित्रता का सूचक है। इसलिये इस राग में भक्ति रस से परिपूर्ण बन्दिशें अधिक सुनायी देतीं हैं। राग भूपाली में राग तोडी जैसे स्वर लेने पर राग भूपाल तोडी सामने आता है। यह राग तीनों सप्तकों में गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग भूपाल तोडी का रूप दर्शाती हैं -
सा ,ध१ सा ; ,ध१ रे१ रे१ सा ; सा रे१ ग१ रे१ सा ; रे१ रे१ ग१ रे१ ; ग१ प रे१ रे१ ग१ ; ग१ प ध१ प ; ध१ सा' ; ध१ प ; प रे१ ग१ रे१ सा ; ग१ रे१ ; रे१ ग१ रे१ सा ;
- Read more about भूपाल तोडी
- Log in to post comments
- 2098 views
भूपाली
यह राग भूप के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तथा चलन अधिकतर मध्य सप्तक के पूर्वांग व मन्द्र सप्तक में किया जाता है। यह चंद्र प्रकाश के समान शांत स्निग्ध वातावरण पैदा करने वाला मधुर राग है। जिसका प्रभाव वातावरण में बहुत ही जल्दी घुल जाता है। रात्रि के रागों में राग भूपाली सौम्य है। शांत रस प्रधान होने के कारण इसके गायन से वातावरण गंभीर व उदात्त बन जाता है। राग भूपाली कल्याण थाट का राग है।
- Read more about भूपाली
- 1 comment
- Log in to post comments
- 12291 views
शंकरा
राग शंकरा की प्रकृति उत्साहपूर्ण, स्पष्ट तथा प्रखर है। यह राग वीर रस से परिपूर्ण है। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। इसका स्वर विस्तार मध्य सप्तक के उत्तरांग व तार सप्तक में किया जाता है।
- Read more about शंकरा
- 1 comment
- Log in to post comments
- 4593 views
सारंग (बृंदावनी सारंग)
राग सारंग को राग बृंदावनी सारंग भी कहा जाता है। यह एक अत्यंत मधुर व लोकप्रिय राग है। इस राग में रे-प, म-नि, नि१-प, म-रे की स्वर संगतियाँ राग वाचक तथा चित्ताकर्षक हैं। इस राग के पूर्वार्ध में प रे म रे और उत्तरार्ध में नि१ प म रे यह स्वर समुदाय बहुतायत से लिये जाते हैं। रे म प नि ; नि नि सा' ; नि१ प म रे सा - यह संगति रागरूप दर्शक और वातावरण परक है। इसके सम प्रकृति राग सूर मल्हार, मेघ मल्हार हैं।
- Read more about सारंग (बृंदावनी सारंग)
- Log in to post comments
- 3192 views
सुन्दरकौन्स
यह राग बहुत ही प्रभावी और चित्ताकर्षक है। राग मालकौंस के कोमल धैवत की जगह जब शुद्ध धैवत का प्रयोग होता है तब राग सुन्दरकौंस की उत्पत्ति होती है।
- Read more about सुन्दरकौन्स
- Log in to post comments
- 149 views