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सिंधु घाटी सभ्यता

Sindhura

यह एक चंचल प्रकृति का राग है जो की राग काफी के बहुत निकट है। राग काफी से इसे अलग दर्शाने के लिए कभी कभी निषाद शुद्ध का प्रयोग आरोह में इस तरह से किया जाता है - म प नि नि सा'। राग काफी में म प ग१ रे यह स्वर समूह राग वाचक है जबकि सिंधुरा में म प ; म ग१ रे ; म ग१ रे सा इस तरह से लिया जाता है।

यह राग भावना प्रधान होने के कारण इसमें रसयुक्त होरी, ठुमरी, टप्पा इत्यादि गाये जाते हैं। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। यह स्वर संगतियाँ राग सिंधुरा का रूप दर्शाती हैं -

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