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राग के प्रकार

Abhogi Kanada

राग अभोगी कान्हड़ा दक्षिण भारतीय पद्धति का राग है। इसमें कान्हड़ा का अंग है, इसलिये गन्धार को अन्दोलित करते हुए ग१ म रे सा ऐसे वक्र रूप मे लिया जाता है। कुछ संगीतकार इस राग को कान्हड़ा अंग के बिना गाते हैं और उसे सिर्फ अभोगी बोलते हैं जिसमें ग म रे सा की जगह म ग रे सा लिया जाता है।

इस राग की प्रकृति गंभीर है। इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग अभोगी कान्हड़ा का रूप दर्शाती हैं -

सा रे ,ध सा ; रे ग१ म ; ग१ म ध सा' ; सा' ध म ; ध म ग१ रे ; ग१ म रे सा ; रे ,ध सा ; रे ग१ म रे सा ;

Adana

Adana
Thaat: Asavari
Jati: Chhadav-Chhadav (6/6)
Varjit Notes: ‘G’ in Aroh and ‘D’ in Avroh
Vadi: Sa
Samvadi: Pa
Vikrat Notes: G, D komal and both Nishads
Time: Night Third Pehar
Aroh: S R m P d N S*
Avroh: S* d n P m P, g m R S


राग अडाना के आरोह में गंधार वर्ज्य होने के कारण यह राग दरबारी कान्हड़ा से अलग दिखता है। राग अडाना विशेष कर मध्य और तार सप्तक में खिलता है। इस राग में गंधार और धैवत पर आंदोलन नहीं किया जाता। और इसी तरह गमक और मींड का भी उपयोग नहीं किया जाता इसीलिए इस राग की प्रकृति में चंचलता है।

Chhayanut

इस राग को राग छाया भी कहते हैं। यह छाया और नट रागों का मिश्रित रूप है। शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह में समान रूप से किया जाता है। परन्तु तीव्र मध्यम का प्रयोग मात्र आरोह में ही होता है और कहीं नहीं होता यथा ध म् प या प ध म् प या म् प ध प। आरोह में शुद्ध निषाद को कभी-कभी छोड़कर तार सप्तक के सा' पर इस तरह से जाते हैं जैसे - रे ग म प ; प ध प प सा'। इसी तरह तार सप्तक के सा' से पंचम पर मींड द्वारा आने से राग का वातावरण बनता है। इसके पूर्वांग में रे ग म प तथा उत्तरांग में <

राग के अन्य नाम

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