दिन का तृतीय प्रहर १० से १ बजे तक
Gaud Sarang
यह दिन के तीसरे प्रहर में गाया जाने वाला सुमधुर राग है। सारंग अंग के सभी रागों के पश्चात इस राग को गाने की प्रथा है। इस राग का वादी स्वर गंधार और संवादी स्वर धैवत है जबकि राग सारंग में ये दोनों स्वर वर्ज्य हैं। इस राग में सिर्फ प-रे की संगति ही सारंग राग को दर्शाती है। इस राग का अपना स्वतंत्र रूप है और आरोह-अवरोह में आने वाली वक्रता से ही राग स्पष्ट होता है। ग रे म ग ; प रे सा यह स्वर संगतियां राग वाचक हैं और प्रत्येक आलाप में इसका प्रयोग होता है।
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Hans Kinkini
यह राग कम प्रचलन में है। इसके निकटतम राग हैं - राग प्रदीपकी, धनाश्री और भीमपलासी। यह राग धनाश्री अंग से गाया जाता है। म प नि१ ध प ; सा' नि१ ध प ; म प ग रे सा; - यह स्वर समुदाय धनाश्री अंग बताता है। हंस किंकिणी में कोमल गंधार (म प ग१ रे सा) लगाने से यह राग धनाश्री से अलग हो जाता है।
राग के अन्य नाम
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Bheem
राग भीम को गावती के नाम से भी जाना जाता है।
इस राग के उत्तरांग में कोमल निषाद को तार सप्तक के षड्ज का कण लगाते हुए गाते हैं जैसे - ग म प (सा')नि१ सा'। इसी प्रकार अवरोह में कोमल निषाद को छोड़ा जाता है जैसे - सा' (प)ध प और म ग रे सा की अपेक्षा ग म रे सा लिया जाता है। तानों में सा ग म प नि१ सा' ; सा' नि१ ध प ग म रे सा इस तरह से लिया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग भीम का रूप दर्शाती हैं -
राग के अन्य नाम
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Bheempalasi
राग भीमपलासी दिन के रागों में अति मधुर और कर्णप्रिय राग है। इसके अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग किया जाता है। अवरोह में रिषभ और धैवत पर जोर दे कर ठहरा नहीं जाता। अवरोह में धैवत को पंचम का तथा रिषभ को षड्ज का कण लगाने से राग की विशेष शोभा आती है। षड्ज-मध्यम तथा पंचम-गंधार स्वरों को मींड के साथ विशेष रूप से लिया जाता है। वैसे ही निषाद लेते समय षड्ज का तथा गंधार लेते समय मध्यम का स्पर्श भी मींड के साथ लिया जाता है। इस राग में निषाद कोमल को ऊपर की श्रुति में गाया जाता है, जिसके लिये बहुत रियाज कि आवश्यकता होती है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तीनों सप्तकों में होता है।
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Sarang (Brindavani Sarang)
राग सारंग को राग बृंदावनी सारंग भी कहा जाता है। यह एक अत्यंत मधुर व लोकप्रिय राग है। इस राग में रे-प, म-नि, नि१-प, म-रे की स्वर संगतियाँ राग वाचक तथा चित्ताकर्षक हैं। इस राग के पूर्वार्ध में प रे म रे और उत्तरार्ध में नि१ प म रे यह स्वर समुदाय बहुतायत से लिये जाते हैं। रे म प नि ; नि नि सा' ; नि१ प म रे सा - यह संगति रागरूप दर्शक और वातावरण परक है। इसके सम प्रकृति राग सूर मल्हार, मेघ मल्हार हैं।
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Madhuvanti
यह अपेक्षाकृत नया राग है। पूर्व में यह राग अम्बिका के नाम से जाना जाता था। यह श्रृंगार रस से परिपूर्ण होने के कारण श्रोताओं पर अपना गहरा प्रभाव डालता है। इसके पास का राग मुलतानी है। राग मुलतानी में रिषभ और धैवत को शुद्ध करके गाने पर यह राग मधुवंती हो जाता है। विशेष कर आलाप लेते समय अवरोह में रिषभ के साथ 'सा' को कण स्वर के रूप में लगाया जाता है जैसे - म् ग१ सारे सा।
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Pilu
Raga Pilu is a light classical raga or thumri that is quite varied. Like Bhairavi, all the 12 notes can be used in a composition. Since the structure of the raga is left to the artist’s style and interpretation, it is sometimes referred to as Misra Pilu (“mixed version of Pilu”) which incorporates not only the main notes but grace notes like komal re, suddha Ga, tivra Ma, komal dha, and both Nis.
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Brindavani Sarang
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Patdeep
राग भीमपलासी में शुद्ध निषाद का प्रयोग करने पर राग पटदीप सामने आता है। राग भीमपलासी में वादी स्वर मध्यम है जबकि राग पटदीप का वादी स्वर पंचम है।
राग के अन्य नाम
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Dhani
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