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ভীমপলাশি

 

ভীমপলাশি (বা ভীমপলশ্রী) হল হিন্দুস্থানি উচ্চাঙ্গসঙ্গীতের একটি রাগ। এটি কাফি ঠাটের অন্তর্গত। এর জাতি ঔড়ব-সম্পূর্ণ। এই রাগের বাদীস্বর মধ্যম, তবে সা এবং পা এর প্রাধান্য বেশি পরিলক্ষিত হয়। এর প্রকৃতি ধীরগতি সম্পন্ন এবং শান্ত ভাব সম্পন্ন। ইহাতে করূণ রস ফুটে উঠে। অপরাহ্নের পর এই রাগ পরিবেশন করা হয়।

তত্ত্ব

আরোহণ এবং অবরোহণ

  • আরোহণঃ সা জ্ঞা মা পা ণা র্সা
  • অবরোহণঃ র্সা ণা ধা পা মা জ্ঞা রা সা

এই রাগটিতে "কোমল নি" এবং "কড়ি মা" ব্যবহৃত হয়। এটি একটি ঔড়ব-সম্পূর্ণ রাগ, অর্থাৎ, এর আরোহণে ৫ টি স্বর এবং অবরোহণে ৭ টি স্বর ব্যবহৃত হয়।

বাদী এবং সমবাদী

  • বাদীঃ মা (চতুর্থ সুর)
  • সমবাদীঃ সা (প্রথম সুর)

পকড় অথবা চলন

  • পকড় অথবা চলনঃ নি  সা মা গা  মা পা মা, মা গা  রে সা

(বন্দিশ) স্থায়ী এবং অন্তরা

রাগ ভীমপলাশী আশ্রিত, নিয়ামত খাঁ এর এই বন্দিশটি খুবই প্রচলিতঃ

 স্থায়ীঃ

যা, যা রে আপনে মান্দিরাভা

সুনা পাবে গি (মোরা) সাস-নানাদিয়া

{বাংলা অনুবাদঃ

যাও,চলে যাও, তোমার মন্দিরে

পাছে শাশুড়ি-ননদিনী শুনে ফেলবে }

অন্তরাঃ

সুনা হো সদারাঙ, তুম কো চাহতা হ্যায়

কেয়া তুম মুঝসে ছালানা কিয়া্‌ ( অথবা, কেয়া তুম হামকো থাগানা দিয়া )

যা, যা রে,,,,,,,

{বাংলা অনুবাদঃ

শুনে যাও সদারঙ্গ, আমি সারাক্ষণ তোমাকেই চেয়েছি

আর তুমি কিনা আমার সাথেই ছলনা করলে !}

প্রতিষ্ঠান এবং সম্পর্ক

সম্পর্কিত রাগগুলিঃ

  • বাগেশ্রী, ধানেশ্রী, ধানি, পতোদীপ, হংসকিঙ্কিণী 
  • ঠাট  ঃ কাফি 
  • কর্ণাটক ঘরানায়, কর্ণাটকা দেবাগান্ধারী হল আরেকটি সদৃশ্যপূর্ণ রাগ।

ব্যবহার

মধ্যম অর্থাৎ মা হল সবচেয়ে গুরুত্বপূর্ণ নোট - এটি একটি 'ন্যাস' স্থানও বটে। উদাহরণ স্বরূপ বলা যেতে পারে, বিস্তারের ক্ষেত্রে - সা গা  মা, মা গা  মা, গা  মা পা,মা পা গা  মা পা (মা) গা  (মা) গা  মা... আরোহণে রে এবং ধা ব্যবহৃত করা হয় না। কিন্তু অবরোহণের সময় রে এবং ধা স্বর দুটি ব্যবহৃত হয়


राग भीमपलासी दिन के रागों में अति मधुर और कर्णप्रिय राग है। इसके अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग किया जाता है। अवरोह में रिषभ और धैवत पर जोर दे कर ठहरा नहीं जाता। अवरोह में धैवत को पंचम का तथा रिषभ को षड्ज का कण लगाने से राग की विशेष शोभा आती है। षड्ज-मध्यम तथा पंचम-गंधार स्वरों को मींड के साथ विशेष रूप से लिया जाता है। वैसे ही निषाद लेते समय षड्ज का तथा गंधार लेते समय मध्यम का स्पर्श भी मींड के साथ लिया जाता है। इस राग में निषाद कोमल को ऊपर की श्रुति में गाया जाता है, जिसके लिये बहुत रियाज कि आवश्यकता होती है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तीनों सप्तकों में होता है।

यह गंभीर प्रकृति का राग है। श्रृंगार और भक्ति रससे यह राग परिपूर्ण है। इस राग में ध्रुवपद, ख्याल, तराने आदि गाये जाते हैं। कर्नाटक संगीत में आभेरी नामक राग इस राग के सामान है। काफी थाट का ही राग धनाश्री, भीमपलासी के ही सामान है। धनाश्री में वादी पंचम है जबकि भीमपलासी में वादी मध्यम है।

यह स्वर संगतियाँ राग भीमपलासी का रूप दर्शाती हैं - सा ,नि१ ,नि१ सा ; ,नि१ सा ग१ रे ; सा रे सा ,नि१ ; ,नि१ ,नि१ सा ; ,प ,नि१ सा ग१ ; ग१ म ग१ रे सा ; सा ग१ म ; म ग१ प ; प म ध प म ग१ म ; म ग१ प म प म ग१ म ; ग१ म प ग१ म ; ग१ ग१ रे सा ; ,नि१ सा म ; प म ग१ ; ग१ रे सा ; सा ग१ म प ; म ग१ प ; प म ध प ; नि१ ध प ; प म ध प म ; प म ; ग१ म प नि१ ; सा' नि१ नि१ नि१ नि१ सा' ; प प सा' नि१ रे' सा' ; सा' रे' सा' नि१ नि१ सा' नि१ ध प ; प ध प म ग१ प म ; ग१ म ग१ रे सा;  

थाट

राग जाति

आरोह अवरोह
,नि१ सा ग१ म प नि१ सा' - सा' नि१ ध प म ग१ रे सा ; ,नि१ सा ,प ,नि१ सा;
वादी स्वर
मध्यम/षड्ज
संवादी स्वर
मध्यम/षड्ज

राग भीमपलासी का परिचय और अलंकार-पल्टों का रियाज़