বাঁসির স্বর ভ্রমণ
बंसीधर कृष्ण कहनैया। भगवान श्रीकृष्ण को इस नाम से पुकारा जाता हैं,जैसे बंसी और कृष्ण एक दुसरे के पर्याय हो ।
इस बंसी के जन्म के संबंध में महाकवि कालिदास ने कुमार सम्भव में कल्पना की हैं कि , भौरों द्वारा छिद्रित वंश - नलिका में वायु के प्रवेश से उत्पन्न मधुर ध्वनी को सुनकर किन्नरों ने उसे वाद्य के रूप में प्रचलित किया । यह वाद्य बहुत पुराना हैं,भारत के नाट्य शास्त्र में भी वंशी का वर्णन हैं , महाभारत ,श्रीमत्भागवत में भी वंशी या बांसुरी का वर्णन हैं ,सूरदास ने लिखा हैं ,
"मेरे स्वव्रे जब मुरली अधर धरी
सुनी थके देव विमान । सुर वधु चित्र समान ।
गढ़ नक्षत्र तजत ने रास । यहीं बंशे ध्वनी पास ।
चराचर गति गई विपरीत । सुनी वेणु कल्पित गीत ।
झरना झरत पाषाण । गंधर्व मोहे कल गान । "
आगे पद और भी लंबा हैं ,कितना सुंदर उनके बंसी वादन का वर्णन हैं ,भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी के प्रथम घ्यात वादक और श्रेष्ठ संगीत्घ्य के रूप में जाने जाते हैं ।
उनके बाद कई हज़ार वर्षो तक बांसुरी को वह प्रेम नही मिला ,सन १९११ में स्वर्गीय पन्नालाल घोष का जन्म हुआ,उन्होंने बांसुरी पर शास्त्रीय संगीत का वादन करके उसे पुनः:प्रतिष्ठापित किया , इसके पूर्व बांसुरी का प्रयोग सिर्फ़ चित्रपट संगीत और लोक संगीत में होता था । उनके बाद पंडित रघुनाथ सेठ ,पंडित विजय राघव राव ,पंडित भोलानाथ मिश्र ,का नाम श्रेष्ठ बांसुरी वादकों में आता हैं
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के नाम से कौन अपरिचित हैं,उनके नाम के अनुसार ही उन्हें हरी से ही बांसुरी वादन का मानो प्रसाद मिला ,उन्होंने बांसुरी की हर फूक में स्वर्गीय स्वर भर दिया,उनके ही कारण बांसुरी वादन आज जनसामान्य में अत्यन्त लोक प्रिय हैं ।
आज अन्य कई युवा कलाकार सुंदर बांसुरी वादन कर रहे हैं ।
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